tag:blogger.com,1999:blog-101707031262171300.post3234489490577235207..comments2023-11-02T21:21:29.057+05:30Comments on ओशो चिन्तन: सत्य को शब्द देना संभव नहींAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/02514200566679057059noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-101707031262171300.post-58365968529169756642007-12-29T18:03:00.000+05:302007-12-29T18:03:00.000+05:30ओशो हमेशा मुझे प्रभावित करते रहे हैं..दीपक जी की त...ओशो हमेशा मुझे प्रभावित करते रहे हैं..दीपक जी की तरह मैं भी आपको अपने ब्लॉग पर लिंक कर रही हूँ ...मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-101707031262171300.post-83285948338708069992007-12-29T17:00:00.000+05:302007-12-29T17:00:00.000+05:30आपने ओशो का दर्शन प्रस्तुत कर बहुत अच्छा किया है, ...आपने ओशो का दर्शन प्रस्तुत कर बहुत अच्छा किया है, इसे आप आगे जारी रखिये. आपकी कोई पोस्ट पढ़ने से चूक न हो इसलिए मैं अपने ब्लोग पर उनको लिंक कर रहा हूँ.<BR/>दीपक भारतदीपदीपक भारतदीपhttps://www.blogger.com/profile/06331176241165302969noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-101707031262171300.post-6913347514191355412007-12-29T14:54:00.000+05:302007-12-29T14:54:00.000+05:30ध्यान और भाव के सहज सरल प्राप्ति के लिए मूर्ति क...ध्यान और भाव के सहज सरल प्राप्ति के लिए मूर्ति को रहने दिया जाए . मानव का पैदा किया बहुत कुछ जन कल्याण कारी है . रजनीश जी तक सोच जिस रोज किसी की हो जाती है . तब न मन्दिर की जरूरत है न मूर्ति की .पूर्णता की प्राप्ति शून्यता से ही शुरू होती है . कोई ये कहे कि रजनीश भी मानव है हम भी मानव अतः दोनों बराबर हैं कोरी बकबास ही होगा . उसी तरह घर और मन्दिर मे फर्क टू होता ही है . दिव्यता का आभास जिस किसी साधन से हो उसे अपनाने मे बुराई तो नही .<BR/>रजनीश जी के विचार के साथ कम से कम दो लाइन का भी आपके विचार की प्रतीक्षा रहेगी हर पोस्ट पर .संजय शर्माhttps://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com