जड़ से हटते ही पौधे सूख जाते हैं!

कल संध्या तक पौधे में प्राण थे। उसकी जड़े जमीन में थी और पत्तों में जीवन था। उसमें हरियाली थी और चमक थी। हवा में वह डोलता था, तो उससे आनंद झरता था। उसके पास से मैं अनेक बार गुजरा था और उसके जीवन-संगीत को अनुभव किया था।फिर कल यह हुआ कि किसी ने उसे खींच दिया, उसकी जड़े हिल गयीं और आज जब मैं उसके पास गया, तो पाया कि उसकी सांसे टूट गई हैं। जमीन से हट जाने पर ऐसा ही होता है। सारा खेल जड़ों का है। वे दिखती नहीं, पर जीवन का सारा रहस्य उन्हीं में है।पौधों की जड़े होती हैं। मनुष्य की भी जड़े होती हैं। पौधों की जमीन है। मनुष्य की भी जमीन है। पौधे जमीन से जड़ हटते ही सूख जाते हैं। मनुष्य भी सूख जाता है।आल्वेयर कामू की एक पुस्तक पढ़ता था। उसकी पहली पंक्ति है कि आत्महत्या एकमात्र महत्वपूर्ण दार्शनिक समस्या है।क्यों? क्योंकि अब मनुष्य के जीवन में कोई प्रयोजन नहीं मालूम होता है। सब व्यर्थ और निष्प्रयोजन हो गया है।हुआ यह है कि हमारी जड़े हिल गई हैं; हुआ यह है कि उस मूल जीवन-स्रोत से हमारे संबंध टूट गये हैं, जिसके अभाव में जीवन एक व्यर्थ की कहानी मात्र रह जाती है।मनुष्य को पुन: जड़ें देनी हैं और मनुष्य को पुन: जमीन देनी है। वे जड़ें आत्मा की हैं ओर जमीन धर्म की है। उतना हो सके तो मनुष्यता में फिर से फूल आ सकते हैं।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)