बच्चों को अंतर्मुखी कैसे बनाया जाए? 
गतांक से आगे::::
फ़्रायड एक बड़ा मनोवैज्ञानिक हुआ। अपनी पत्नी और अपने बच्चे के साथ एक दिन बगीचे में घूमने गया था। जब सांझ को वापस लौटने लगा, अंधेरा घिर गया, तो देखा दोनों ने कि बच्चा कहीं नदारद है। फ़्रायड की पत्नी घबड़ाई, उसने कहा कि बच्चा तो साथ नहीं है, कहां गया? बड़ा बगीचा था मीलों लंबा, अब रात को उसे कहां खोजेंगे? 

फ़्रायड ने क्या कहा? 

उसने कहा, तुमने उसे कहीं जाने को वर्जित तो नहीं किया था? कहीं जाने को मना तो नहीं किया था? 

उसकी स्त्री ने कहा, हां, मैंने मना किया था, फव्वारे पर मत जाना! 

तो उसने कहा, सबसे पहले फव्वारे पर चल कर देख लें। सौ में निन्यानबे मौके तो ये हैं कि वह वहीं मिल जाए, एक ही मौका है कि कहीं और हो। 

उसकी पत्नी चुप रही। जाकर देखा, वह फव्वारे पर पैर लटकाए हुए बैठा हुआ था। उसकी पत्नी ने पूछा कि यह आपने कैसे जाना?

उसने कहा, यह तो सीधा गणित है। मां-बाप जिन बातों की तरफ जाने से रोकते हैं, वे बातें आकर्षक हो जाती हैं। बच्चा उन बातों को जानने के लिए उत्सुकता से भर जाता है कि जाने। जिन बातों की तरफ मां-बाप ले जाना चाहते हैं, बच्चे की उत्सुकता समाप्त हो जाती है, उसका अहंकार जग जाता है, वह रुकावट डालता है, वह जाना नहीं चाहता। आप यह बात जान कर हैरान होंगी कि इस तथ्य ने आज तक मनुष्य के समाज को जितना नुकसान पहुंचाया है, किसी और ने नहीं। क्योंकि मां-बाप अच्छी बातों की तरफ ले जाना चाहते हैं, बच्चे का अहंकार अच्छी बातों के विरोध में हो जाता है। मां-बाप बुरी बातों से रोकते हैं, बच्चे की जिज्ञासा बुरी बातों की तरफ बढ़ जाती है। मां-बाप इस भांति अपने ही हाथों अपने बच्चों के शत्रु सिद्ध होते हैं।

इसलिए शायद कभी आपको यह खयाल न आया हो कि बहुत अच्छे घरों में बहुत अच्छे बच्चे पैदा नहीं होते। कभी नहीं होते। बहुत बड़े-बड़े लोगों के बच्चे तो बहुत निकम्मे साबित होते हैं। गांधी जैसे बड़े व्यक्ति का एक लड़का शराब पीया, मांस खाया, धर्म परिवर्तित किया। आश्चर्यजनक है! क्या हुआ यह? गांधी ने बहुत कोशिश की उसको अच्छा बनाने की, वह कोशिश दुश्मन बन गई।

तो एक बात तो यह समझ लें कि जिसको भी परिवर्तित करने का खयाल उठे, पहले तो स्वयं का जीवन उस दिशा में परिवर्तित हो जाना चाहिए। तो आपके जीवन की छाया, आपके जीवन का प्रभाव, बहुत अनजान रूप से बच्चे को प्रभावित करता है। आपकी बातें नहीं, आपके उपदेश नहीं। आपके जीवन की छाया बच्चे को परोक्ष रूप से प्रभावित करती है और उसके जीवन में परिवर्तन की बुनियाद बन जाती है।

और दूसरी बात, बच्चे को कभी भी दबाव डाल कर, आग्रह करके किसी अच्छी दिशा में ले जाने की कोशिश मत करना। वही बात अच्छी दिशा में जाने के लिए सबसे बड़ी दीवाल हो जाएगी। और हो भी सकता है, जब तक वह छोटा रहे, आपकी बात मान ले; क्योंकि कमजोर है और आप ताकतवर हैं, आप डरा सकते हैं, धमका सकते हैं, आप हिंसा कर सकते हैं उसके साथ। और यह मत सोचना कभी कि मां-बाप अपने बच्चों के साथ कैसे हिंसा करेंगे! मां-बाप ने इतनी हिंसा की है बच्चों के साथ जिसका कोई हिसाब नहीं है। दिखाई नहीं पड़ती। जब भी हम किसी को दबाते हैं तब हम हिंसा करते हैं। बच्चे के अहंकार को चोट लगती है। लेकिन वह कमजोर है, सहता है। आज नहीं कल जब वह बड़ा हो जाएगा और ताकत उसके हाथ में आएगी, तब तक आप बूढ़े हो जाएंगे, तब आप कमजोर हो जाएंगे, तब वह बदला लेगा। बूढ़े मां-बाप के साथ बच्चों का जो दुर्व्यवहार है उसका कारण मां-बाप ही हैं। बचपन में उन्होंने बच्चों के साथ जो किया है, बुढ़ापे में बच्चे उनके साथ करेंगे।
जारी-----
(सौजन्‍य से – ओशो न्‍यूज लेटर)