प्रात:कालीन ध्यान विधियां- मंडल



यह एक अन्य शक्तिशाली विधि है, जो ऊर्जा का एक वर्तुल निर्मित कर देती है। जिसके स्वाभाविक रूप से केंद्र में प्रवेश घट जाता है। इसमें पंद्रह-पंद्रह मिनट के चार चरण हैं।
प्रथम चरण : पंद्रह मिनट
आंखें खुली रखें और एक ही स्थान पर खड़े-खड़े दौड़ें। धीरे-धीरे शुरू करके तीव्र से तीव्र होते जाएं। जहां तक बन सकें घुटनों को ऊपर उठाएं। श्वास को गहरा और सम रखने से ऊर्जा भीतर घूमने लगेगी। मन को भूल जाएं और शरीर को भूल जाएं। बस एक ही जगह पर दौड़ते रहें।
दूसरा चरण : पंद्रह मिनट
आंखें बंद करके बैठ जाएं। मुंह को शिथिल और खुला रखें। कमर से ऊपर के शरीर को धीरे-धीरे चक्राकार घुमाएं- जैसे हवा में पेड़-पौधे झूमते हैं। अनुभव करें कि हवा आपको इधर-उधर, आगे-पीछे और चारों ओर घुमा रही है। इससे भीतर जागी ऊर्जा नाभि-केंद्र पर आ जाएगी।
तीसरा चरण : पंद्रह मिनट
अब आंखें खोल कर, सिर को स्थिर रखते हुए पीठ के बल लेट जाएं और दोनों आंखों की पुतलियों को बाएं से दाएं घड़ी के कांटे की तरह वृत्ताकार घुमाएं। आंखों को इस तरह घुमाएं, जैसे कि वे एक बड़ी सुई का अनुसरण कर रही हों, परंतु गति को जितना हो सके तेज रखें। यह महत्वपूर्ण है। मुंह खुला रहे और जबड़े शिथिल रहें। श्वास धीमी एवं सम बनी रहे। इससे आपकी केंद्रित ऊर्जा तीसरी आंख पर आ जाएगी।
चौथा चरण : पंद्रह मिनट
आंखें बंद करलें और शांत लेट रहें।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
मृत्यु का भय
जब तक मृत्यु हो ही नहीं जाती तब तक हम उसे जान ही नहीं सकते। फिर हम उससे क्यों भयभीत हैं?
बुनियादी सत्य यह है कि हम नहीं हैं। और क्योंकि हम नहीं हैं, हम न मर सकते हैं और न जन्म ले सकते हैं। क्योंकि आप नहीं हैंे, आप दुख में और बंधन में नहीं हो सकते। ओशो हमें एक आंतरिक खोज पर ले जाते हैं: अगर आप खोजो तो पता चलेगा कि आपका शरीर एक संयोग है, जोड़ है। कुछ चीज मां से मिली है, कुछ चीज पिता से मिली है और शेष सब भोजन से मिला है। फिर मन पर ध्यान करें-- कुछ यहां से आया है, कुछ वहां से आया है। मन में कुछ भी ऐसा नहीं है जो मौलिक हो। वह भी एक संग्रह है।
अगर गहरे खोजते चले गए तो आपको पता चलेगा कि आपका व्यक्तित्व एक प्याज जैसा है। एक पर्त को हटाओ कि दूसरी पर्त सामने आ जाती है। दूसरी को हटाओ, तीसरी आ जाती है। पर्त पर पर्त हटाते जाओ और अंत में आपके हाथ में शून्य बचेगा।
एक बार अपने शून्य का साक्षात्कार कर लें तो फिर भय नहीं रहेगा।
अमृत साधना