नीति मार्ग नहीं है- गतांक से आगे


इन्हीं नैतिक व्यक्तियों ने नरक की कल्पना की है कि चोरों को वहां जलवाएंगे कड़ाहियों में, बेईमानों को वहां आग में डालेंगे, कीड़े-मकोड़े सताएंगे, और नरक में अनंतकालीन कष्ट देंगे। ऐसे-ऐसे धर्म हैं जो कहते हैं कि अनंतकाल के लिए नरक में डाल दिए जाएंगे, अनंतकाल के लिए। कितने पाप किया होगा आखिर? एक आदमी जिंदगी में कितना पाप कर सकता है। दो-चार-दस साल की सजा भी ठीक हो सकती थी, अनंतकाल के लिए नरक में डाल देने वाले लोग कौन रहे होंगे? ये वे ही नैतिक लोग, जिन्होंने थोड़ी-बहुत ईमानदारी साध ली है तो बेईमानों से बदला लेना चाहते हैं उसका नरक में डाल कर। ये वे ही नैतिक लोग रस लेते हैं नरक में और खुद के लिए व्यवस्था कर ली उन्होंने स्वर्ग की। जहां ऐसी स्त्रियां हैं जो हमेशा जवान रहती है और कभी बूढ़ी नहीं होतीं। और जहां नदियों में शराब बहती है पानी नहीं बहता। यहां उन्होंने चुल्लू भर शराब छोड़ दी है तो वहां शराब के झरनों में नहाना चाहते हैं और पीते रहना चाहते हैं।

अपने लोगों ने व्यवस्था कर ली है नैतिक लोगों ने स्वर्ग की और अनैतिक लोगों के लिए नरक की। यह क्या धार्मिक लोगों ने किया होगा? क्या कोई धार्मिक चित्त का व्यक्ति यह कल्पना कर सकता है कि जिसने कभी भूल की है उसे नरक में डाल कर आग में सड़ाएंगे। और अगर ऐसा आदमी भी धार्मिक आदमी भी यह कल्पना कर सकता है तो फिर अधार्मिक आदमी और धार्मिक आदमी में भेद क्या है?

तो मुझे दिखाई पड़ता है ये सारे स्वर्ग-नरक नैतिक व्यक्ति से पैदा हुए हैं, धार्मिक व्यक्ति से नहीं। यह भय और प्रलोभन नैतिक व्यक्ति ने पैदा किया धार्मिक व्यक्ति ने नहीं।

धर्म का संबंध नीति से कोई भी नहीं है इस भांति का जैसा हम सोचते हैं कि नैतिक व्यक्ति धार्मिक हो जाएगा। नहीं, लेकिन एक दूसरी तरह का संबंध जरूर है। धार्मिक व्यक्ति अनिवार्यतः नैतिक हो जाता है, लेकिन उसे नैतिक होने का बोध नहीं होता। यह सहज होता है। यह कोई कल्टिवेटिड, यह कोई आरोपित बात नहीं होती उसका नैतिक होना। वह नैतिक होने को मजबूर होता है। वह नैतिक होने को विवश होता है। वह नैतिक ही हो सकता है, अनैतिक होने का सवाल ही नहीं उठता। यह मुझे नहीं लगता कि कोई नैतिकता जीवन का पथ है। कभी भी नहीं है। नैतिकता तो कोई और प्रयोजन से व्यवस्था की गई है, उसका धर्म से कोई संबंध नहीं है। समाज की व्यवस्था है नैतिकता। समाज चाहता है चोरी न हो। समाज चाहता है जिनका धन है उनके पास सुरक्षित रहे। और जिनके पास धन है वे तो बहुत ही चिंतित हैं इस बात के लिए कि चोरी बिलकुल न हो। इसलिए धनियों ने जितने भी ग्रंथ लिखवाए हैं सबमें लिखवा दिया है चोरी करना पाप है। लेकिन धनिकों के द्वारा लिखवाए गए ग्रंथों में कहीं भी नहीं लिखा है कि शोषण करना पाप है, एक्सप्लाइटेशन पाप है, यह कहीं भी नहीं लिखा है। आज तक एक भी धर्मग्रंथ ने यह नहीं लिखा कि एक्सप्लाइटेशन पाप है। चोरी पाप है यह तो समझ में आ गया, लेकिन इतना धन इकट्ठा कैसे हो जाता है एक आदमी के पास? यह पाप नहीं है? नहीं तो वे धर्मग्रंथ कहते हैं यह पिछले जन्मों के पुण्य से इकट्ठा हो गया।

गरीबी पिछले जन्म के पाप के कारण है, धन पिछले जन्म के पुण्य के कारण है। और चोरी, चोरी करना मत, क्योंकि चोरी हमेशा धनिक के विरोध में है, इसलिए चोरी पाप है। शोषण पाप नहीं है। और बड़ा मजा यह है कि अगर शोषण न हो तो चोरी कैसे हो सकती है? जब तक दुनिया में शोषण है चोरी होगी। चोरी कैसे रुक सकती है। बड़े चोर धनपति हैं, छोटे चोर जेलों में बंद हैं। बिना चोरी के धन इकट्ठा होता ही नहीं। धन का संग्रह मात्र चोरी है, लेकिन धन के संग्रह को पाप नहीं कहते हैं धर्मग्रंथ। और नैतिक गुरु उसको पाप नहीं बताते हैं। क्योंकि सब नैतिक गुरु और सब धर्मशास्त्री जिन-जिन के धन पर जीते हैं, उनके धन की निंदा नहीं कर सकते, उसमें असमर्थ हैं। इसलिए एक षड्यंत्र चल रहा है दुनिया में हजारों साल से धनियों के बीच और धर्मगुरुओं के बीच एक साजिश चल रही है। और धर्मगुरु धनी की सुरक्षा कर रहा है हजारों साल से। और व्यवस्था दे रहा है उसको कि तेरे पुण्य का फल है यह। और चोरी के विरोध में है वह।
जारी----