प्रेम का भोजन



 



गतांक से आगे----
यह हमेशा होता है: एक निराशावादी हमेशा एक आशावादी ढूंढ़ ही लेता है जिसके साथ उसका मेल हो सके; एक परपीड़क हमेशा एक परपीड़ित ढूंढ़ ही लेता है; जो दूसरे पर मालकियत करना चाहता हो वह हमेशा ऐसे किसी को ढूंढ़ ही लेता है जो अधिकार में रहना चाहता है, तब वे एक-दूसरे के अनुकूल हैं। तुम दो परपीड़ितों को साथ रहता नहीं देख सकते, कभी नहीं। मैनें हजारों दंपतियों को देखा है: मैं अब तक एक भी ऐसे दंपति से नहीं मिल सका हूं जिसमें दोनों साथी परपीड़ित हों या दोनों परपीड़क हों। इस तरह साथ रहना असंभव है; उनका तालमेल होना जरूरी है। केवल विपरीत लोगों का ही तालमेल होता है, और लोग हमेशा विपरीत के साथ प्रेम में पडते हैं।

यदि तुम किसी स्त्री से मिल सकते हो जो पुत्र की तलाश में हैवह भी बहुत बदसूरत है, वह भी बीमार है, क्योंकि एक स्त्री को प्राकृतिक रुप से एक प्रेमी ढूंढ़ना चाहिए, बच्चा नहीं। और यही परेशानी है, और परेशानी और ज्यादा जटिल हो जाती है: तब यदि वह एक पुत्र को ढूंढ़ भी रही है, तो वह इससे अनभिज्ञ है; और तब यदि तुम मां को ढूंढ़ रहे हो, तुम इससे अनभिज्ञ हो। वास्तव में, यदि एक स्त्री तुम्हारी मां बनने की कोशिश करे तो तुम आहत महसूस करते हो। तुम कहोगे, “तुम क्या कर रही हो? क्या मैं बच्चा हूं”? और तुम मां को ढूंढ़ रहे हो। हजारों, लाखों लोग मां को ढूंढ़ रहे हैं।

इसीलिए आदमी स्त्रियों के स्तनों में इतनी ज्यादा दिलचस्पी रखता है; अन्यथा स्त्रियों के स्तनों में इतनी ज्यादा दिलचस्पी रखने की जरुरत नहीं है। दिलचस्पी इतना ही दिखाती है कि तुम्हारे बचपन में, तुम्हारे नाश्ते के समय, तुमसे कुछ छूट गया है। यह अभी भी चल रहा है, यह अभी भी तुम्हारे मन में मंडरा रहा है, यह तुम्हारे पीछे पड़ा है। स्तन नाश्ते के समय के लिए हैं। अब इस उम्र में तुम क्यों सोचते रहते हो और चित्र बनाते रहते हो।

गहराई में देखो, क्योंकि यह तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है, इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है। अब तुम अपनी मां को बदल नहीं सकते। यह हुआ था जैसा हुआ था, लेकिन तुम सजग हो सकते हो। तुम इन सभी अंदर की बातों के प्रति सजग हो सकते हो। और सजग होने के बाद चमत्कार घटित होता है। यदि तुम इन सभी बातों के प्रति सजग हो जाओ, वे छूटने लगती हैं। वे तुम्हारे साथ गहरी अचेतन अवस्था में चिपकी रहती हैं। एक गहन सजग अवस्था बदलाव की ताकत बन जाती है।


इसलिए बस सजग हो! यदि प्रेम के प्रति तुम्हारा रवैया बचकाना है, तो सजग हो जाओ, पता लगाओ, गहराई में खोजो। और बस सजग होने पर वे छूट जाती हैं। इसलिए किसी और की जरुरत नहीं है। ऐसा नहीं कि पहले तुम सजग हो और तभी तुम पूछ सकते हो अब क्या करना है”? जिस पल तुम सजग हो जाते हो वे गायब हो जाती हैं, क्योंकि सजग होने में तुम वयस्क होते जा रहे हो।

बच्चा जागरुक नहीं है। बच्चा गहन अचेतनता में जीता है। सजग होने में तुम वयस्क होते जा रहे हो, परिपक्व, इसलिए वह सब कुछ जो तुम्हारी अचेतनता में चिपका हुआ था, गायब हो जायेगा। बस उसी तरह से जैसे तुम किसी कमरे में रोशनी करते हो और अंधेरा गायब हो जाता है; अपने दिल की गहराई में सजगता लाओ।

ऐसे लोग भी हैं जो दोपहर के खाने से भी वंचित रह गए हैं। तब बुढ़ापे में वे जिन्हें तुम सनकी बुड्ढाकहते हो वैसे बन जाते हैं। तब वे बुढ़ापे में लगातार सेक्स के बारे में सोचते हैं और कुछ नहीं। वे सीधे सेक्स के बारे में बात न कर सकें वे सेक्स के खिलाफ बात करना शुरु करेंगे लेकिन वे सेक्स के बारे में ही बात करेंगे। उनके खिलाफ होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

तुम भारत के तथाकथित साधुओं को सुनो, और तुम पाओगे वे लगातार सेक्स के खिलाफ बोलेंगे और ब्रह्मचर्य की तारीफ करेंगे। इन लोगों से दोपहर का भोजन भी छूट गया था। अब दिन के आखरी खाने का समय आया हैऔर वे पागल हो रहे हैं। अब वे जानते हैं कि मौत आ रही है। और जब मौत पास आ रही है, और उनके हाथों से समय गायब हो रहा है, अगर वे विक्षिप्त हो जाते हैं तो यह स्वाभाविक लगता है।

इन विक्षिप्त लोगों के पास पुराने शास्त्रों की कहानियां हैं कि जब वे ध्यान करेंगे, स्वर्ग से सुंदर स्त्रियां - अप्सराएं उतर आयेंगी। उनके चारों ओर वे नग्न होकर नृत्य करेंगी। वे ऐसा क्यों करेंगी? हिमालय पर ध्यान में बैठे बुड्ढे आदमी के बारे में कौन परवाह करेगा। कौन फिक्र करे? वह लगभग मर चुका है कौन फिक्र करे? स्वर्ग की वे अप्सराएं, वे बेहतर लोग ढूंढ़ सकती हैं। वास्तव में, बहुत से लोग अप्सराओं का पीछा कर रहे हैं, उन्हें ॠषियों का, इन कथित साधुओं का पीछा करने का समय कैसे मिल सकता है? ना, इसका अप्सराओं या स्वर्ग या किसी और से कोई लेना देना नहीं है। यह बस इतना है कि इन लोगों से नाश्ता या दोपहर का खाना या दोनों छूट गये हैं। और अंतिम भोजन के वक्त उनकी कल्पना उनसे जबरदस्त खेल खेल रही है। यह उनकी कल्पना है, भूखी कल्पना।

तुम एक काम करो: तुम बस तीन सप्ताह का उपवास रखो, और तब हर जगह तुम्हें खाना दिखना शुरु हो जाएगाहर जगह! यहां तक की पूर्णिमा के चांद को आसमान में देख कर तुम कह सकते हो कि यह चपाती जैसा लगता है। यह ऐसे घटेगा। तुम प्रक्षेपित करना शुरू करोगे, तुम्हारी कल्पना तुम्हारे साथ खेल खेलेगी।

यदि ऐसा होता है, तब करुणा कभी नहीं आएगी। धीरे-धीरे चलो, सचेत, सजग, प्रेमपूर्वक। यदि तुम कामुक हो मैं नहीं कहता सेक्स को छोड दो: मैं कहता हूं इसे और सतर्क कर दो, इसे और प्रार्थनापूर्ण बना दो, इसे और गहन बना दो, जिससे कि यह प्रेम बन सके। यदि तुम प्रेम कर रहे हो, तब इसे और ज्यादा अनुग्रहपूर्ण बना दो; गहन कृतज्ञता, आनंद, उत्सव पैदा करो, इसकी प्रार्थना करो, इसका ध्यान करो, ताकि यह करुणा बन सके।

जब तक करुणा का भाव तुममें न आए, सोचना भी मत कि तुम सही तरीके से जिये या तुम जिये भी। करुणा ही खिलावट है । और जब करुणा किसी व्यक्ति पर उतराती है, लाखों के घाव भर जाते हैं। जो कोई भी उसके पास आता है भला-चंगा हो जाता है। करुणा चिकित्सकीय है।
 (सौजन्‍य से:  ओशो  न्‍यूज  लेटर)

प्रेम का भोजन


 
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जैसा जीवन हैमैंने इसे तीन भागों में विभाजित किया है: नाश्ता, दोपहर का भोजन, दिन का अंतिम भोजन। बचपन है नाश्ते का समय । और ऐसा होता है यदि तुम्हें आज तुम्हारा नाश्ता नहीं दिया गया है, तुम दोपहर के खाने पर बहुत ज्यादा, सभी अनुपात के बाहर भूख महसूस करोगे। और यदि दोपहर का भोजन भी छूट गया है, तब रात के भोजन के वक्त तुम लगभग पागल हो जाओगे। प्रेम भोजन है इसीलिए मैने जीवन को तीन भागों में विभाजित किया है: नाश्ता, दोपहर का भोजन, दिन का अंतिम भोजन।
प्रेम भोजन है: आत्मा का भोजन। जब कोई बच्चा पहली बार अपनी मां के स्तन को चूसता है, वह दो चीजें पा रहा, केवल दूध नहीं। दूध उसके शरीर में जा रहा है और प्रेम उसकी आत्मा में जा रहा है। प्रेम अदृश्य है, जैसे कि आत्मा अदृश्य है; दूध दिखता है जैसे कि शरीर दिखता है। यदि तुम्हारे पास देखने के लिए आखें हैं, तो तुम दोनों चीजों को एक साथ मां के स्तन से बच्चे के अंतरतम में जाता देख सकते हो। दूध सिर्फ प्रेम का दिखने वाला भाग है; प्रेम दूध का अदृश्य भाग है ममता, प्रेम, करुणा, आशीर्वाद।
यदि बच्चे से उसका नाश्ता छूट गया है, तब जब वह जवान होगा उसे प्रेम की बहुत ज्यादा जरुरत होगीऔर वह मुसीबत पैदा करती है। तब वह प्रेम के लिए बहुत अधीर होगावह मुसीबत पैदा करता है। तब वह प्रेम के लिए बहुत जल्दी में होगाजो कि मुश्किल पैदा करती है क्योंकि प्रेम बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है, यह धैर्य चाहता है। और जितने ज्यादा आप जल्दी में हैं, ज्यादा ही संभावना है कि तुम खो दोगे।
क्या तुमने यह खुद में और दूसरों में देखा है? जिन्हें प्रेम की बहुत ज्यादा जरुरत होती है वे हमेशा परेशान होते हैं, क्योंकि वे हमेशा महसूस करते हैं कि कोई उनकी जरुरतें पूरी नहीं कर रहा। वास्तव में, कोई दोबारा उनकी मां बनने नहीं जा रहा है। मांबच्चे के रिश्ते में, बच्चे से कोई उम्मीद नहीं की जाती थी। एक बच्चा क्या कर सकता है? वह असहाय है। वह कुछ भी वापस नहीं कर सकता। ज्यादा से ज्यादा वह मुस्कुरा सकता है, यही सब कुछ है, या अपनी आंखों से देखता है कि मां कहां जा रही है, यही सब कुछ है। छोटी, खूबसूरत भावभंगिमाएं लेकिन इससे ज्यादा वह क्या कर सकता है। मां को देना है, बच्चे को लेना है।
यदि नाश्ते के समय तुमने यह खो दिया है, तब तुम एक ऐसी स्त्री को ढूंढ़ रहे होंगे जोकि तुम्हारी मां बन सके। अब, एक स्त्री प्रेमी ढूंढ़ रही है, ना कि पुत्र; वहां परेशानी होनी ही है। शायद किसी मौके से, या दुर्घटना से, तुम किसी ऐसी स्त्री को मिल सकते हो जो पुत्र ढूंढ़ रही है। तब बात बन जाएगी; तब दो बीमारियां एक दूसरे मे मिल जाएंगी।
-------जारी
(सौजन्‍य से:  ओशो  न्‍यूज  लेटर)
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