शांति के लिए अभ्यास नहीं सद्भाव चाहिए


एक संध्या की बात है। गेलीली झील पर तूफान आया हुआ है। एक नौका डूबती-डूबती हो रही थी। बचा का कोई उपाय नहीं दीखता था। यात्री और मांझी घबरा गये थे। आंधियों के थपेड़े प्राणों को हिला रहे थे। पानी की लहरें भीतर आना शुरू हो गई थीं। और किनारे पहुंच से बहुत दूर थे। पर इस गरजते तूफान में भी नौका के एक कोने में एक व्यक्ति सोया हुआ था- शांत और निश्चिंत। उसके साथियों ने उसे उठाया। सबकी आंखों में आसन्न मृत्यु की छाया थी।
उस व्यक्ति ने उठकर पूछा,'इतने भयभीत क्यों हो?' जैसे भय की कोई बात ही न थी।
उसने पुन: पूछा, 'क्या अपने आप पर बिलकुल भी आस्था नहीं है?' इतना कह कर वह शांति और धीरज से उठा और नाव के एक किनारे पर गया। तूफान आखिरी चोट कर रहा था। उसने विक्षुब्ध हो गयी झील से जाकर कहा,'शांति, शांत हो जाओ।' ( Peace, be still. )
तूफान जैसे कोई नटखट बच्चा था। ऐसे ही उसने कहा था,'शांत हो जाओ!'
यात्री समझे होंगे कि यह क्या पागलपन है! तूफान क्या किसी की मानेगा? लेकिन उनकी आंखों के सामने ही तूफान सो गया था और झील ऐसी शांत हो गयी थी कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है।
उस व्यक्ति की बात मान ली गयी थी।
वह व्यक्ति था जीसस क्राइस्ट। यह बात है, दो हजार वर्ष पुरानी। पर मुझे यह घटना रोज ही घटती मालूम होती है।
क्या हम सभी निरंतर एक तूफान, एक अशांति से नहीं घिरे हुए हैं? क्या हमारी आंखों में भी निरंतर आसन्न मृत्यु की छाया नहीं है? क्या हमारे भीतर चित्त की झील विक्षुब्ध नहीं है? क्या हमारी जीवन नौका भी प्रतिक्षण डूबती-डूबती मालूम नहीं होती है?
तब क्या यह उचित नहीं है कि हम अपने से पूछें, 'इतने भयभीत क्यों हो? क्या अपने आप पर बिलकुल भी आस्था नहीं है?' और अपने भीतर की झील पर जा कर कहें, 'शांति, शांत हो जाओ।'
मैंने यह कह कर देखा है और पाया है कि तूफान सो जाता है। केवल शांत होने के भाव करने की ही बात है और शांति आ जाती है। अपने भाव से प्रत्येक अशांत है। अपने भाव से शांत भी हो सकता है। शांति उपलब्ध करना अभ्यास की बात नहीं है। केवल सद्भाव ही पर्याप्त है।
शांति तो हमारा स्वरूप है। घनी अशांति के बीच भी एक केंद्र पर हम शांत हैं। एक व्यक्ति यहां तूफान के बीच भी निश्चिंत सोया हुआ है। इस शांत, निश्चल, निश्चिंत केंद्र पर ही हमारा वास्तविक होना है। उसके होते हुए भी हम अशांत हो सके हैं, यही आश्चर्य है। उसे वापस पा लेने में तो कोई आश्चर्य नहीं है।
शांत होना चाहते हो, तो इसी क्षण, अभी और यहीं शांत हो सकते हो। अभ्यास भविष्य में फल लाता है, सद्भाव वर्तमान में ही। सद्भाव अकेला वास्तविक परिवर्तन है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन )

1 comment:

पारुल "पुखराज" said...

aapki post niyamit padhtii huun...bahut sahaj dhang se aap apni baat rakhtey hain..aur jaaney v samjhney ki jigyaasaa rakhti huun....aabhaar