एक कहानी है।
एक अविवाहित युवती को पुत्र उत्पन्न हो गया था। उसके प्रियजन घबरा गये थे। उन्होंने उससे गर्भ का कारण पूछा। वह बोली कि गांव के बाहर ठहरे हुए साधु ने उसका शील भंग किया है। उसके क्रोधित प्रियजनों ने साधु को घेरकर बहुत बुरा-भला कहा। उस साधु ने सब शांति से सुना और कहा, 'ऐसा है क्या?' वह केवल इतना ही बोला था और बच्चे के पालन का भार उसने अपने ऊपर ले लिया था। पर घर लौटकर उस लड़की को पश्चाताप हुआ और उसने यथार्थ बात कह दी। उसने बता दिया कि उसने साधु को तो इसके पूर्व कभी देखा ही नहीं था; लड़के के असली पिता को बचाने के लिए उसने झूठी बात कह दी थी। उसके परिवार के लोग बहुत दुखी हुए। उन्होंने जाकर साधु से क्षमा मांगी। साधु ने सारी बात शांति से सुनी और कहा, 'ऐसा है क्या?'
जीवन में शांति आ जाए, तो यह सारा जगत और जीवन एक अभियान से ज्यादा कुछ भी नहीं रह जाता है। में केवल एक अभिनेता हो जाता हूं। बाहर कहानी चलती जाती है और भीतर शून्य घिरा रहता है। इस स्थिति को पाकर ही संसार की दासता से मुक्ति होती है।
मैं दास हूं, क्योंकि जो भी बाहर से आता है, उससे उद्विग्न होता हूं। कोई भी बाहर से मेरे भीतर को बदल सकता है। मैं इस भांति परतंत्र हूं। बाहर से मुक्ति हो जाये- बाहर कुछ भी हो पर मैं भीतर वही रह सकूं, जो कि हूं, तो स्व का और स्वतंत्रता का प्रारंभ होता है।
यह मुक्ति, शून्य उपलब्धि से शुरू होती है। शून्य होना है। शून्य अनुभव करना है। उठते-बैठते, चलते-सोते जानना है कि मैं शून्य हूं और इसका स्मरण रखना है। शून्य को स्मरण रखते-रखते शून्य होना हो जाता है। श्वास-श्वास में शून्य भर जाता है। भीतर शून्य आता है, तो बाहर सरलता आ जाती है। शून्यता ही साधुता है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
4 comments:
bahut badhiya dhanyawaad
मेरे ख्याल से पहली पंक्ति में विवाहित की जगह अविवाहित होना चाहिए था। शायद अ गलती से छूट गया है क्योंकि विवाहिक स्त्री को तो पुत्र होना स्वाभाविक है।
लेकिन वाकई, ओशो का कोई जोड़ नहीं हैं।
यह अविवाहित ही है. इसमें मेरी ही गलती है. इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं, इस पोस्ट को संशोधित कर पुनः पोस्ट कर रहा हूं. साथ ही बलती की ओरध्यान दिलाने के लिए श्री अनिल रघुराज जी का आभार व्यक्त करता हूं.
धन्यवाद
यह अविवाहित ही है. इसमें मेरी ही गलती है. इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं, इस पोस्ट को संशोधित कर पुनः पोस्ट कर रहा हूं. साथ ही गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए श्री अनिल रघुराज जी का आभार व्यक्त करता हूं.
धन्यवाद
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