स्वाधार चैतन्य ही समाधि है


'ईश्वर है?'- हमें ज्ञात नहीं।
'आत्मा है?'- हमें ज्ञात नहीं।
'मृत्यु के बाद जीवन है?'- हमें ज्ञात नहीं।
'जीवन में कोई अर्थ है?'- हमें ज्ञात नहीं।
'हमें ज्ञात नहीं' यह आज का पूरा जीवन-दर्शन है। इन तीनों शब्दों में हमारा पूरा ज्ञान समा जाता है। 'पर' के संबंध में, पदार्थ के संबंध में जानने की हमारी दौड़ का अंत नहीं है। पर 'स्व' के, चैतन्य के संबंध में हम प्रतिदिन अंधेरे में डूबते जाते हैं।
बाहर प्रकाश मालूम होता है, भीतर घुप्प अंधेरा है। परिधि पर ज्ञान है, केंद्र पर अज्ञान है।
और आश्चर्य यह है कि केंद्र को प्रकाशित करने का प्रयास भी नहीं करना है। वहां आंख भर पहुंच जाये और सब प्रकाशित हो जाता है।
'पर' आंख न हो, तो वह 'स्व' पर खुल जाती है।
बाहर उसे आधार न हो, तो वह स्व पर आधार खोज लेती है।
स्वाधार चैतन्य ही समाधि है।
समाधि सत्य का द्वार है। उसमें यह नहीं कि सब प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं, वरन् सब प्रश्न गिर जाते हैं। प्रश्नों का गिर जाना ही असली उत्तर है। जहां प्रश्न नहीं और केवल चैतन्य है- शुद्ध चैतन्य है, वही उत्तर है, वही ज्ञान है।
इस ज्ञान को पाये बिना जीवन निरर्थक है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

2 comments:

Udan Tashtari said...

आभार-अब ओशो का प्रवचन सी डी से सुन कर सो जाऊँगा. आप बहुत साधुवादी कार्य कर रहे हैं.

मीनाक्षी said...

बाहर प्रकाश मालूम होता है, भीतर घुप्प अंधेरा है। परिधि पर ज्ञान है, केंद्र पर अज्ञान है। -----
आज का कड़वा सच यही है...!