प्रकाश की एक किरण


अंधकार से भरी रात्रि में प्रकाश की एक किरण का होना भी सौभाग्य है, क्योंकि जो उसका अनुसरण करते हैं, वे प्रकाश के स्रोत तक पहुंच जाते हैं।
एक राजा ने किसी कारण नाराज हो अपने वजीर को एक बहुत बड़ी मीनार के ऊपर कैद कर दिया था। एक प्रकार से यह अत्यंत कष्टप्रद मृत्यु दण्ड ही था। न तो उसे कोई भोजन पहुंचाया जाता था और न उस गगनचुंबी मीनार से कूदकर ही उसके भागने की कोई संभावना थी।
वह वजीर जब कैद करके मीनार की तरफ ले जाया जा रहा था, तो लोगों ने देखा कि वह जरा भी चिंतित और दुखी नहीं है। विपरीत, वह सदा की भांति ही आनंदित और प्रसन्न है। उसकी पत्नी ने रोते हुए उसे विदा दी और उससे पूछा कि वह प्रसन्न क्यों है! उसने कहा कि यदि रेशम का एक अत्यंत पतला सूत भी मेरे पास पहुंचाया जा सका, तो मैं स्वतंत्र हो जाऊंगा और क्या इतना-सा काम तुम नहीं कर सकोगी?
उसकी पत्नी ने बहुत सोचा, लेकिन उस ऊंची मीनार पर रेशम का पतला सूत भी पहुंचाने का कोई उपाय उसकी समझ में नहीं आया। उसने एक फकीर को पूछा। फकीर ने कहा, 'भृंग नाम के कीड़े को पकड़ो। उसके पैर में रेशम के धागे को बांध दो और उसकी मूछों पर शहद की एक बूंद रखकर उसे मीनार पर, उसका मुंह चोटी की ओर करके छोड़ दो।' उसी रात्रि यह किया गया। वह कीड़ा सामने मधु की गंध पाकर उसे पाने के लोभ में धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगा। उसने अंतत: एक लंबी यात्रा पूरी कर ली और उसके साथ रेशम का एक छोर मीनार पर बंद कैदी के हाथ में पहुंच गया। वह रेशम का पतला धागा उसकी मुक्ति और जीवन बन गया। क्योंकि, उससे फिर सूत का धागा बांधकर ऊपर पहुंचाया गया, फिर सूत के धागे से डोरी पहुंच गई और फिर डोरी से मोटा रस्सा पहुंच गया और रस्से के सहारे वह कैद के बाहर हो गया।
इसलिए, मैं कहता हूं कि सूर्य तक पहुंचने के लिये प्रकाश की एक किरण भी बहुत है। और वह किरण किसी को पहुंचानी भी नहीं है। वह प्रत्येक के पास है। जो उस किरण को खोज लेते हैं, वे सूर्य को भी पा लेते हैं।
मनुष्य के भीतर जो जीवन है, वह अमृत्व की किरण है- जो बोध है, वह बुद्धत्व की बूंद है और जो आनंद है, वह सच्चिदानंद की झलक है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

2 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

शीर्षक और पोस्ट देख कर प्रथमदृष्टया यही लगता है कि महान ओशो चिंतन नहीं कर रहे हैं, राजेन्द्र त्यागी कर रहे हैं! आपका फोटू भी छलावे वाला है.

Udan Tashtari said...

नमन करता हूँ और किसी भी बात से बिना विचलित हुए नमित ही हूँ. :)