जीवन को तो जानो!


जीवन क्या है? जीवन के रहस्य में प्रवेश करो। मात्र जी लेने से जीवन चूक जाता है, लेकिन ज्ञात नहीं होता। अपनी शक्तियों को उसे जी लेने में नहीं, ज्ञात करने में भी लगाओ। और, जो उसे ज्ञात कर लेता है, वही वस्तुत: उसे ठीक से जी भी पाता है।
रात्रि कुछ अपरिचित व्यक्ति आए थे। उनकी कुछ समस्याएं थीं। मैंने उनकी उलझन पूछी। उनमें से एक व्यक्ति बोला, ''मृत्यु क्या है?'' मैं थोड़ा हैरान हुआ। क्योंकि समस्या जीवन की होती है। मृत्यु की कैसी समस्या? फिर मैंने उन्हें कन्फ्यूशियस से ची-ली की हुई बातचीत बताई। ची-ली ने कन्फ्यूशियस से मृत्यु के पूर्व पूछा था कि मृतात्माओं का आदर और सेवा कैसे करनी चाहिए? कन्फ्यूशियस ने कहा, ''जब तुम जीवित मनुष्यों की ही सेवा नहीं कर सकते, तो मृतात्माओं की क्या कर सकोगे?'' तब ची-ली ने पूछा, ''क्या मैं मृत्यु के स्वरूप के संबंध में कुछ पूछ सकता हूं?'' मृत्यु के द्वार पर खड़ा वृद्ध कन्फ्यूशियस बोला, ''जब जीवन को ही अभी तुम नहीं जानते, तब मृत्यु को कैसे जान सकते हो?'' यह उत्तर बहुत अर्थपूर्ण है। जीवन को जो जान लेता है, वे ही केवल मृत्यु को जान पाते हैं। जीवन का रहस्य जिन्हें ज्ञात हो जाता है, उन्हें मृत्यु भी रहस्य नहीं रह जाती है, क्योंकि वह तो उसी सिक्के का दूसरा पहलू है।
मृत्यु से भयभीत केवल वे ही होते हैं, जो कि जीवन को नहीं जानते। मृत्यु का भय जिसका चला गया हो, जानना कि वह जीवन से परिचित हुआ है। मृत्यु के समय ही ज्ञात होता है कि व्यक्ति जीवन को जानता था कि नहीं? स्वयं में देखना : वहां यदि मृत्यु-भय हो, तो समझना कि अभी जीवन को जानना शेष है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

2 comments:

Udan Tashtari said...

धन्य धन्य!! ओशो महाप्रभु!!

परमजीत सिहँ बाली said...

आभार|