प्रेम अनुभूति है !




प्रेम को पाओ। उससे ऊपर और कुछ भी नहीं है। तिरुवल्लुवर ने कहा है, 'प्रेम जीवन का प्राण है। जिसमें प्रेम नहीं, वह सिर्फ मांस से घिरी हुई हड्डियों का ढेर है।'
प्रेम क्या है? कल कोई पूछता था। मैंने कहा, ''प्रेम जो कुछ भी हो, उसे शब्दों में कहने का उपाय नहीं, क्योंकि वह कोई विचार नहीं है। प्रेम तो अनुभूति है। उसमें डूबा जा सकता है, लेकिन उसे जाना नहीं जा सकता। प्रेम पर विचार मत करो। विचार को छोड़ो और फिर जगत को देखो। उस शांति में जो अनुभव में आएगा, वही प्रेम है।''
और, फिर मैंने एक कहानी भी कही। किसी बाउल फकीर से एक पंडित ने पूछा, ''क्या आपको शास्त्रों में वर्गीकृत प्रेम के विभिन्न रूपों का ज्ञान है?'' वह फकीर बोला, ''मुझ जैसा अज्ञानी शास्त्रों की बात क्या जानें?'' इसे सुनकर उस पंडित ने शास्त्रों में वर्गीकृत प्रेम की विस्तृत चर्चा की और फिर उस फकीर का तत्संबंध में मंतव्य जानना चाहा। वह फकीर खूब हंसने लगा और बोला, ''आपकी बातें सुनकर मुझे लगता था कि जैसे कोई सुनार फूलों की बगिया में घुस आया है और वह स्वर्ण को परखने वाले पत्थर पर फूलों को घिस-घिसकर उनका सौंदर्य परख रहा है!''
प्रेम को विचारों मत- जीओ। लेकिन, स्मरण रहे कि उसे जीने में स्वयं को खोना पड़ता है। अहंकार अप्रेम है और जो जितना अहंकार को छोड़ देता है, वह उतना ही प्रेम से भर जाता है। ऐसा प्रेम ही परमात्मा के द्वार की सीढ़ी है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

3 comments:

Udan Tashtari said...

आभार-जय हो!!!

मीनाक्षी said...

तभी तो कहा गया है प्रेम गली अति साँकरी, जा में दो न समाए...आपका हर लेख सुन्दर विचार से सजा हुआ है....

OMG OMG: said...

only pic is understood by me :-)