किसी वृक्ष के नीचे बैठे हुए, अतीत और भविष्य के बारे में न सोचते हुए, सिर्फ अभी और यहीं होते हुए, आप कहां हैं? 'मैं' कहां हूं? आप इस 'मैं' को अनुभव नहीं कर सकते, वह इस क्षण में नहीं है। अहंकार कभी वर्तमान में नहीं पाया जाता। अतीत अब नहीं है, भविष्य अभी आने को है; दोनों नहीं हैं। अतीत जा चुका है, भविष्य अभी आया नहीं- केवल वर्तमान ही है। और, वर्तमान में कभी भी अहंकार जैसी कोई चीज नहीं मिलती।
तिब्बत के कुछ मठों में बहुत ही प्राचीन ध्यान-विधियों में से एक विधि अभी भी प्रयोग की जाती है। यह ध्यान-विधि इसी सत्य पर आधारित है, जो मैं आपसे कह रहा हूं। वे सीखते हैं कि कभी-कभी आप अचानक गायब हो सकते हैं। बगीचे में बैठे हुए बस भाव करें कि आप गायब हो रहे हैं। बस देखें कि जब आप दुनिया से विदा हो जाते हैं, जब आप यहां मौजूद नहीं रहते, जब आप एकदम मिट जाते हैं, तो दुनिया कैसी लगती है। बस एक सेकेंड के लिए न होने का प्रयोग करके देखें।
अपने ही घर में ऐसे हो जाएं जैसे कि नहीं हैं। यह बहुत ही सुंदर ध्यान है। चौबीस घंटे में आप इसे कई बार कर सकते हैं- सिर्फ आधा सेकेंड भी काफी है। आधा सेकेंड के लिए एकदम खो जाएं- आप नहीं हैं और दुनिया चल रही है। जैसे-जैसे हम इस तथ्य के प्रति और-और सजग होते हैं, तो हम अपने अस्तित्व के एक और आयाम के प्रति सजग होते हैं, जो लंबे समय से, जन्मों-जन्मों से उपेक्षित रहा है। और वह आयाम है स्वीकार भाव का। हम चीजों को सहज होने देते हैं, एक द्वार बन जाते हैं। चीजें हमारे बिना भी होती हैं।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
तिब्बत के कुछ मठों में बहुत ही प्राचीन ध्यान-विधियों में से एक विधि अभी भी प्रयोग की जाती है। यह ध्यान-विधि इसी सत्य पर आधारित है, जो मैं आपसे कह रहा हूं। वे सीखते हैं कि कभी-कभी आप अचानक गायब हो सकते हैं। बगीचे में बैठे हुए बस भाव करें कि आप गायब हो रहे हैं। बस देखें कि जब आप दुनिया से विदा हो जाते हैं, जब आप यहां मौजूद नहीं रहते, जब आप एकदम मिट जाते हैं, तो दुनिया कैसी लगती है। बस एक सेकेंड के लिए न होने का प्रयोग करके देखें।
अपने ही घर में ऐसे हो जाएं जैसे कि नहीं हैं। यह बहुत ही सुंदर ध्यान है। चौबीस घंटे में आप इसे कई बार कर सकते हैं- सिर्फ आधा सेकेंड भी काफी है। आधा सेकेंड के लिए एकदम खो जाएं- आप नहीं हैं और दुनिया चल रही है। जैसे-जैसे हम इस तथ्य के प्रति और-और सजग होते हैं, तो हम अपने अस्तित्व के एक और आयाम के प्रति सजग होते हैं, जो लंबे समय से, जन्मों-जन्मों से उपेक्षित रहा है। और वह आयाम है स्वीकार भाव का। हम चीजों को सहज होने देते हैं, एक द्वार बन जाते हैं। चीजें हमारे बिना भी होती हैं।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
2 comments:
sundar sandesh,
बहुत आभार. जय हो!!
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