मन को जानों!


मनुष्य का मन ही सब कुछ है। यह मन सब कुछ जानना चाहता है। लेकिन, ज्ञान केवल उन्हें ही उपलब्ध होता है, जो कि इस मन को ही जान लेते हैं।
कोई पूछता था, ''सत्य को पाने के लिए मैं क्या करूं?'' मैंने कहा, ''स्वयं की सत्त में प्रवेश करो। और, यह होगा चित्त की जड़ पकड़ने से। उसके शाख-पल्लवों की चिंता व्यर्थ है। चित्त की जड़ को पकड़ने के लिए आंखों को बंद करो और शांति से विचारों के निरीक्षण में उतरो। किसी एक विचार को लो और उसके जन्म से मृत्यु तक का निरीक्षण करो।'' लुक्वान यू ने कहा है, ''विचारों को ऐसे पकड़ो, जैसे कि कोई बिल्ली चूहे की प्रतीक्षा करती और झपटती है।'' यह बिलकुल ठीक कहा। बिल्ली की भांति ही तीव्रता, उत्कटता और सजगता से प्रतीक्षा करो। एक पलक भी बेहोशी में न झपे और फिर जैसे ही कोई विचार उठे, झपटकर पकड़ लो। फिर उसका सम्यक निरीक्षण करो। वह कहां से पैदा हुआ और कहां अंत होता है- यह देखो। और, यह देखते-देखते ही तुम पाओगे कि वह तो पानी के बुलबुले की भांति विलीन हो गया है या कि स्वप्न की भांति तिरोहित। ऐसे ही क्रमश: जो विचार आवें, उनके साथ भी तुम्हारा यही व्यवहार हो। इस व्यवहार से विचार का आगमन क्षीण होता है और निरंतर इस भांति उन पर आक्रमण करने से वे आते ही नहीं हैं। विचार न हों, तो मन बिलकुल शांत हो जाता है। और, जहां मन शांत है, वहीं मन की जड़ है। इस जड़ को जो पकड़ लेता है, उसका स्वयं में प्रवेश होता है। स्वयं में प्रवेश पा लेना ही सत्य को पा लेना है।
सत्य जानने वाले में ही छिपा है। शेष कुछ भी जानने से वह नहीं उघड़ता। ज्ञाता को ही जो जान लेते हैं, ज्ञान उन्हें ही मिलता है। ज्ञेय के पीछे मत भागो। ज्ञान चाहिए, तो ज्ञाता के भी पीछे चलना आवश्यक है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

4 comments:

Udan Tashtari said...

जय हो!! महाराज जी की जय हो!

ALOK PURANIK said...

जय हो

मीनाक्षी said...

इसी सत्य की तलाश मे जीवन भर हम लगे रहते है...

Taro world said...

Excellent touch