दिल दे दिया है, जान भी देंगे, सब्जी नहीं लायेंगे सनम

अमृत साधना

अभी मैं टैक्सी में बैठकर आ रही थी, टैक्सी ड्राइवर ने रेडियो मिर्ची चला रखा था। दोपहर का वक्त था इसलिए पुराने गाने बज रहे थे। यह गाना सुना: "दिल दे दिया है, जान भी देंगे, दगा नहीं देंगेे सनम।' मुझे हंसी आ गई। यह गाना कम से कम तीस साल पुराना होगा। न जाने कितनी बार युवक-युवतियों ने गुनगुनाया होगा, एक दूसरे को रोमांटिक पलों में सुनाया होगा। मन ही मन सोचा होगा कि हम इतना प्यार करते हैं कि उसके लिए जान भी दे देंगे। कहां गया वह प्यार? ये रोमानी "यालात दिल बहलाने के लिए अच्छे हैं लेकिन प्यार जब यथार्थ की कसौटी पर कसा जाता है तब सारा रोमांस रफूचक्कर हो जाता है।
यकीन नहीं होता? तो फिर घर-घर  जाकर  रोज होनेवाले डायलॉग सुनिये। प्रेमी के लिए "चांद और सूरज बीच गगन से इस धरती पर उतार दूं' कहनेवाला युवक पति बनने के बाद ऊपर रक्खा हुआ डिब्बा उतारने में झुंझलाता है, दफ्तर से आते हुए सब्जी ले आना उसे तौहीन लगती है। वह प्रेमिका को बादलों से पार तो ले जा सकता है लेकिन जुहू बीच घुमाने नहीं ले जा सकता। और प्रेमी की आंखों में डूबने की बातें करने वाली पत्नी पास बैठे हुए पति को देखने की बजाय  टीवी पर किसी हीरो को देखना ज्यादा पसंद करती है।
प्यार के साथ ये हादसे क्यों होते हैं? ये कोई आज के किस्से नहीं हैं , सदियों से होते चले आ रहे  हैं। जरा गौर करें, जिनके अमर प्रेम की कहानियां सुनाई जाती हैं वे सभी प्रेमी ऐसे हैं जिनका कभी मिलन नहीं हुआ: शीरीं-फरहाद, सोहनी-महिवाल, हीर-रांझा, रोमियो- जुलियेट, और भी बहुत सारे। इतिहास में उन प्रेमियों कि कोई  दास्तान नहीं है जो साथ रहने लगे।
क्यों? क्योंकि गृहस्थी की आग में तवे पर रोटी ही नहीं जलती, प्रेम भी जलकर राख हो जाता है-- वह प्रेम जो महज रूमानी कल्पनाओं और शेरो शायरी पर आधारित हो।
तथापि  मनुष्य को प्रेम बेहद जरूरत है। वह ऐसी अनबुझ प्यास है जिसे बुझाने का कोई उपाय मनुष्य के पास नहीं है। उसकी वजह यह है कि लोग प्रेम के स्वभाव को नहीं समझते। वे प्रेम के ऊपर अपनी धारणाओं और अपेक्षाओं को थोपते हैं। उनसे कुचलकर प्रेम जैसी नाजुक, अपार्थिव तरंग मर जाती है। क्या है प्रेम का स्वभाव?
ओशो ने इसे बहुत खूबसूरती से समझाया है। वे कहते हैं, ""लव इज़ इटर्नल, यू किल इट बाइ ट्राइंग टु मेक इट परमनेंट। प्रेम शाश्वत है लेकिन उसे स्थायी बनाने की कोशिश में तुम उसे मार डालते हो।''
शाश्वत का अर्थ है जो क्षण-क्षण मरे और जी उठे । प्रेम इतना अस्थायी है क्योंकि प्रेम दिव्यत्व का एक झोंका है, जैसे आकाश में बिजली कौंध गई और विदा हो गई। क्या उसे कोई दुबारा चमका सकता है? वह अपनी मर्जी की मालिक है। प्रेम ऐसा ही होता है, एक क्षण में इतना  गहन, इतना उत्कट कि लगता है कभी मरेगा नहीं, और दूसरे क्षण नदारद। हमारी चाहत कि यह सघन अनुभव कल भी मिले, प्रेम की हत्या कर देती है। फिर प्रेमी आहें भरते हैं कि  रास्ते वही, मुसाफिर भी वही, इक तारा न जाने कहां खो गया!  यह तारा प्रेम का तारा है, जो आ गया तो  ज़ेेहरे नसीब, और चला गया तो कहें अलविदा। इतनी स्वतंत्रता जहां हो वहीं प्रेम टिक सकता है।
प्रेम के साथ मृत्यु इस तरह जुड़ी है जैसे पदार्थ के साथ छाया। इसीलिए प्रेम में मर मिट जाने का जुनून सवार होता है। " मैं तुझ पर मरता हूं या मरती हूं," जैसे भाव पैदा होते हैं। वे उस पल झूठ नहीं होते, लेकिन उनकी उम" उतनी ही होती है जितनी कि प्रेम की: क्षणजीवि।   
फरवरी में आनेवाला वैलेंटाईन दिवस भी संत वैलेंटाईन की मृत्यु से शुरू हुआ था। वे अपने लिए नहीं बल्कि उन प्रेमी युगलों के लिए मरे जिनकी शादियां वे चोरी छुपे करवाते थे। सम"ाट ने इस अपराध के लिए उन्हें मृत्युदंड दिया।
प्रेम में अगर कोई मरने की कला सीख ले तो वैलेंटाइन दिवस के साथ शुरू होनेवाला प्रेम जिंदगी भर उनके साथ बना रहेगा। प्रेम में एक ही बाधा है-- न तो घर-परिवार, न ज़माना-- प्रेम में बाधा है तो अहंकार की। प्रेम "आइ लव यू " से शुरू होता है, और गुलाब, गुलशन और गुलबानो से गुजरता हुआ यह झरना अहंकार के रेगिस्तान में खो जाता है। फिर जरा-सी अनबन हुई नहीं कि सवाल खड़ा होता है, पहले कौन झुकेगा? अगर दोनों के बीच बातचीत बंद हो तो दोनों सोचते हैं, पहले कौन फोन करेगा? क्योंकि जो पहले फोन करे वह हार गया।
लेकिन, प्रेम का गणित उल्टा है, यहां जो जितना हारेगा वह जीतेगा। इसे ठीक से समझने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने एक नया शब्द गढ़ा है: लव-हेट रिलेशनशिप। यह मन का स्वभाव है, वह जिससे प्रेम करता है उसी से नफरत  भी करता है। शायद सुनकर धक्का लगे, लेकिन  यह सचाई है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है, अपराध बोध पालने की कोई बात नहीं है। जैसे पृथ्वी गोल-गोल घूमती रहती है और अंधेरे-उजाले का खेल रचती है वैसे ही मन भी घूमता रहता है और नफरत-प्यार का ताना-बाना बुनता है। यह उसका स्वभाव है। एक बार यह समझ आ गई तो प्रेम का खेल मजे से खेला जा सकता है। इस वैलेंटाइन पर अपने प्रेमी को " आइ लव-हेट यू' कहना शुरू करें। पहले उन्हें समझा जरूर दें , नहीं तो लेने के देने पड़ जायेंगे।



3 comments:

Udan Tashtari said...

माँ अमृत साधना को पढ़ना अद्भुत रहा.

अजित गुप्ता का कोना said...

पढ़कर बहुत अच्‍छा लगा, एकदम लगा कि अपनी ही बात को पढ़ रही हूँ। यह सत्‍य है कि प्रेम शाश्‍वत है लेकिन वह स्‍थाई भाव हो ही नहीं सकता। जिस व्‍यक्ति से हम प्‍यार करते हैं उसी से एक मिनट बाद घृणा भी करते हैं। बहुत अच्‍छी पोस्‍ट, आभार।

Unknown said...

bahut achi tarah se samjhaya hai prem k marm ko.
Apne mere man me
uth rhe sawalo
ko sant kiya .Thank U.