|
| |||
| | ||
| तुम्हारी समस्याओं को हल करने का अर्थ है--तुम्हें एक उत्तर देना जो तुम्हें बौद्धिक स्तर पर संतुष्ट करता हो; और तुम्हारी समस्याओं को समाप्त करने के लिए--तुम्हें एक विधि देना जो तुम्हें स्वयं अवगत करा दे कि समस्या जैसा कुछ है ही नहीं: समस्याएं हमारी स्वयं की कृतियां हैं और उसके लिए किसी उत्तर की आवश्यकता नहीं है। प्रबुद्ध चेतना के पास कोई उत्तर नहीं है। इसका सौंदर्य यही है कि इसके पास कोई प्रश्न नहीं है। इसके सभी प्रश्न समाप्त हो चुके हैं, तिरोहित हो चुके हैं। लोग दूसरी तरह से सोचते हैं: वे सोचते हैं कि प्रबुद्ध व्यक्ति के पास हर बात का उत्तर होना चाहिए। और वास्तविकता यह है कि उसके पास कोई भी उत्तर नहीं है। उसके पास कोई प्रश्न ही नहीं है। बिना प्रश्नों के उसके पास कोई उत्तर कैसे हो? एक महान कवयित्री, गरट्रूड स्टीन, अपने मित्रों से घिरी हुई मर रही थी कि अचानक उसने अपनी आंखें खोलीं और कहा, "क्या है उत्तर?' किसी ने कहा, "लेकिन हमें प्रश्न ही पता नहीं है, तो हम उत्तर कैसे जान सकते हैं? आखिरी बार उसने अपनी आंखें खोलीं और कहा, "ठीक है, तो प्रश्न क्या है?' और वह मर गई। एक अनोखा आखिरी वक्तव्य। कवियों,चित्रकारों,नर्तकों और गायकों के अंतिम वचन हासिल कर पाना अति सौंदर्यपूर्ण होता है। उन वचनों में कुछ अत्यंत सार्थक समाहित होता है। पहले उसने पूछा, "क्या है उत्तर?'...जैसे कि विभिन्न मनुष्यों के लिए प्रश्न भिन्न नहीं हो सकते। प्रश्न वही होने चाहिए; इसे कहने की कोई आवश्यकता नहीं है। और वह जल्दी में थी, इसलिए उचित रास्ते से जाने के बजाय--प्रश्न पूछना और फिर उसके उत्तर सुनना--उसने इतना ही पूछा, "क्या है उत्तर?' लेकिन लोग नहीं समझते कि हर व्यक्ति उसी स्थिति में है: वही प्रश्न सभी का प्रश्न है। इसलिए कोई मूर्ख व्यक्ति पूछ सकता है कि, "लेकिन यदि हम प्रश्न ही नहीं जानते तो हम उत्तर कैसे दे सकते हैं?' यह तर्कपूर्ण लगता है, लेकिन ऐसा है नहीं, यह मात्र मूर्खतापूर्ण है--और वह भी एक मरते हुए व्यक्ति से...लेकिन उस वेचारी महिला ने एक बार फिर अपनी आंखें खोलीं। उसने कहा, "ठीक है, क्या है प्रश्न?' और फिर वहां सन्नाटा हो गया। कोई "प्रश्न' नहीं जानता, कोई "उत्तर' नहीं जानता। वास्तव में न तो कोई प्रश्न है, और न हीं कोई उत्तर है; विचारों में जीना, भ्रांतियों में जीने का का एक ढंग है। तब लाखों प्रश्न हैं और लाखों उत्तर, और प्रत्येक प्रश्न फिर और सैकड़ों प्रश्न ले आता है, और इसका कोई अंत नहीं है। लेकिन जीने का एक दूसरा ढंग भी है: होशपूर्वक जीना-- और तब न उत्तर है, न प्रश्न है। जब गरट्रूड स्टीन मर रही थी, यदि मैं वहां मौजूद होता, मैं उससे कहता, "यह क्षण प्रश्न और उत्तर के लिए परेशान होने का नहीं है। याद रखो, न कोई प्रश्न है और न कोई उत्तर: अस्तित्व प्रश्न और उत्तर के विषय में पूर्णतया मौन है। यह कोई दर्शन-शास्त्र की कक्षा नहीं है। बिना किसी प्रश्न के, और बिना किसी उत्तर के मृत्यु में उतर जाओ; बस चुपचाप, होशपूर्वक, शांतिपूर्वक मृत्यु मे उतर जाओ।' (सौजन्य से : ओशो न्यूज लेटर) |
2 comments:
osho ke vachno ko sanjone ka prayas sarahniy hai.
watch me also
Post a Comment