प्रतिबद्धता का भय



केवल निर्णय लेने से ही तुम अधिक से अधिक सजग हो सकते हो, केवल निर्णय लेने से ही तुम अधिक से अधिक स्पष्ट हो सकते है, केवल निर्णय लेने से ही तुम तीक्ष्ण बुद्धि के बन सकते हो, अन्यथा तुम सुस्त रह जाओगे|
लोग एक गुरु से दूसरे गुरु के पास जाते है, एक सतगुरु से दूसरे सतगुरु के पास जाते है, एक मंदिर से दूसरे में, इसलिए नहीं कि वे एक महान खोजी है, पर इसलिए कि वे निर्णय लेने में असमर्थ होते है| इसलिए वे एक को छोड़ कर दूसरे की ओर जाते है| यह उनका प्रतिबद्धता से बचने का मार्ग है|

कुछ ऐसा ही अन्य मानवीय संबंधों में भी होता है : पुरुष एक स्त्री से दूसरी स्त्री की ओर जाता है, और बदलता ही चला जाता है| लोग समझते है कि वह एक महान प्रेमी है; लेकिन वह कोई प्रेमी नहीं है, वह केवल बच रहा है, वह किन्हीं गहरे संबंधों से बचने की कोशिश कर रहा है| क्योंकि गहरे संबंधों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है| और इसमें बहुत पीड़ा से गुज़रना पड़ता है| इसलिए व्यक्ति केवल सुरक्षित रहना चाहता है; लोग कोशिश करते हैं कि किसी के भीतर गहरे न उतरें। अगर तुम ज्यादा गहरे गए तो हो सकता है तुम आसानी से वापिस न आओ। और तुम किसी के भीतर गहरे उतरो तो कोई और भी तुम्हारे भीतर गहरे उतरेगा–– उसी अनुपात में। अगर मैं तुम्हारे भीतर गहरे जाऊं तो इसका रास्ता यही है कि मैं भी तुम्हें अपने भीतर गहरे प्रवेश करने दूं। यह लेन-देन है, साझेदारी है। फिर हो सकता है व्यक्ति अत्यधिक उलझ जाए, और भागना मुश्किल हो जाए और असहनीय पीड़ा हो। इसलिए लोग सुरक्षित रहना पसंद करते हैं कि सिर्फ सतहों को मिलने दो। छिछले प्रेम संबंध! इससे पहले कि तुम फंसो, भाग खड़े होओ।
आधुनिक जीवन में ऐसा ही हो रहा है। लोग बचकाने हो गए हैं, इतने बचकाने कि उनकी सारी परिपक्वता खो गई है। परिपक्वता तभी आती है जब तुम आंतरिक पीड़ा से गुज़रने के लिए तैयार होते हो। प्रौढ़ता तभी आती है जब तुम यह चुनौती स्वीकारने के लिए तैयार होते हो। और प्रेम से बढ़कर कोई चुनौती नहीं है।  दूसरे व्यक्ति के साथ प्रसन्नता पूर्वक रहना दुनिया में से बड़ी से बड़ी चुनौती है । अकेले शांति पूर्वक जीना बहुत आसान है, किसी दूसरे के साथ शांति पूर्वक जीना महा कठिन है क्योंकि दो संसार टकराते हैं, दो दुनियाएं मिलती हैं–– सर्वथा भिन्न दुनियाएं। वे एक दूसरे से आकर्षित कैसे होते हैं? क्योंकि वे एक  दूसरे से बिलकुल अलग हैं, लगभग विपरीत धृव हैं।

जारी----
(सौजन्‍य से: ओशो इंटरनेश्‍नल न्‍यूज लेटर)

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