मैं उंगलियों पर गिनी जा सकें, इतनी बातें कहता हूं:
1. मन को जानना है, जो इतना निकट है, फिर भी इतना अज्ञात है।
2. मन को बदलना है, जो इतना हठी है, पर परिवर्तित होने को इतना आतुर है।
3. मन को मुक्त करना है, जो पूरा बंधन में है, किंतु 'अभी और यहीं' मुक्त हो सकता है।
ये तीन बातें भी कहने की हैं, करना तो केवल एक ही काम है। वह है : मन को जानना। शेष दो उस एक के होने पर अपने आप हो जाती हैं। ज्ञान ही बदलाहट है, ज्ञान ही मुक्ति है।
यह कल कहता था कि किसी ने पूछा, 'यह जानना कैसे हो?'
यह जानना-जागने से होता है। शरीर और मन दोनों की हमारी क्रियाएं मूिर्च्छत हैं। प्रत्येक क्रिया के पीछे जागना आवश्यक है। मैं चल रहा हूं, मैं बैठा हूं या में लेटा हूं, इसके प्रति सम्यक स्मरण चाहिए। मैं बैठना चाहता हूं, इस मनोभाव या इच्छा के प्रति भी जागना है। चित्त पर क्रोध है या क्रोध नहीं है, इस स्थिति को भी देखना है। विचार चल रहे हैं या नहीं चल रहे हैं, उनके प्रति भी साक्षी होना है।
यह जागरण दमन से या संघर्ष से नहीं हो सकता है। कोई निर्णय नहीं लेना है। सद्-असद् के बीच कोई चुनाव नहीं करना है। केवल जागना है- बस जागना है। और जागते ही मन का रहस्य खुल जाता है। मन जान लिया जाता है। और केवल जानने से परिवर्तन हो जाता है। और परिपूर्ण जानने से मुक्ति हो जाती है।
इससे मैं कहता हूं कि मन की बीमारी से मुक्ति आसान है, क्योंकि यहां निदान ही उपचार है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
3 comments:
सुबह सुबह ऐसी बातें पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.
अच्छी बातें पढ़ने को मिली ...धन्यवाद...
anmol vachan padana bahut aacha lagata hai
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