मैं शांति, आनंद और मुक्ति की बातें कर रहा हूं। जीवन की वही केंद्रीय खोज है। वह पूरी न हो, तो जीवन व्यर्थ हो जाता है। कल यह कह रहा था कि एक युवक ने पूछा कि क्या सभी को मोक्ष मिल सकता है? और यदि मिल सकता है, तो फिर मिल क्यों नहीं जाता?
एक कहानी मैंने उससे कही : गौतम बुद्ध के पास एक प्रभात किसी व्यक्ति ने भी यही पूछा था। उन्होंने कहा था कि जाओ और नगर में पूछकर आओ कि जीवन में कौन क्या चाहता है? वह व्यक्ति घर-घर गया और संध्या को थका-मांदा एक फेहरिस्त लेकर लौटा। कोई यश चाहता था, कोई पद चाहता था, कोई धन, वैभव, समृद्धि, पर मुक्ति का आकांक्षी तो कोई भी नहीं था! बुद्ध बोले थे कि अब बोलो, अब पूछो; मोक्ष तो प्रत्येक को मिल सकता है। वह तो है ही, पर तुम एक बार उस ओर देखो भी तो! हम तो उस ओर पीठ किये खड़े हैं।
यही उत्तर मेरा भी है। मोक्ष प्रत्येक को मिल सकता है, जैसे कि प्रत्येक बीज पौधा हो सकता है। वह हमारी संभावना है, पर संभावना को वास्तविकता में बदलना है। इतना मैं जानता हूं कि बीज को वृक्ष बनाने का यह काम कठिन नहीं है। यह बहुत ही सरल है। बीज मिटने को राजी हो जाए, तो अंकुर उसी क्षण आ जाता है। मैं मिटने को राजी हो जाऊं, तो मुक्ति उसी क्षण आ जाती है। 'मैं' बंधन है। वह गया कि मोक्ष है।
'मैं' के साथ मैं संसार में हूं, 'मैं' नहीं कि मैं ही मोक्ष हूं।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
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