सत्य की एक किरण मात्र को खोज लो, फिर वह किरण ही तुम्हें आमूल बदल देगी। जो उसकी एक झलक भी पा लेते हैं, वे फिर अपरिहार्य रूप से एक बड़ी क्रांति से गुजरते हैं।
गुस्ताव मेयरिन्क ने एक संस्मरण लिखा है। उनके किसी चीनी मित्र ने एक अत्यंत कलात्मक और सुंदर पेटी उपहार में भेजी। किंतु, साथ में यह आग्रह भी किया कि उसे कक्ष के पूर्व-पश्चिम दिशा में ही रखा जावे, क्योंकि उसका निर्माण ऐसे ही किया गया है कि वह पूर्वोन्मुख होकर ही सर्वाधिक सुंदर होती है। मेयरिन्क ने इस आग्रह को आदर दिया और कम्पास से देखकर उस पेटी को मेज पर पूर्व-पश्चिम जमाया। लेकिन वह कमरे की दूसरी चीजों के साथ ठीक नहीं जमी। पूरा कमरा ही बेमेल दिखने लगा तब और चीजों को भी बदलना पड़ा। मेज भी बाद में और चीजों से संगत दीखे इसलिए पूर्व-पश्चिम जमानी पड़ी।। इस भांति पूरा कक्ष ही पुन: आयोजित हुआ और समय के साथ ही उससे संगति बैठाने को पूरा मकान ही बदल गया। यहां तक कि मकान के बाहर की बगिया तक में उसके कारण परिवर्तन हो गये। यह घटना बहुत अर्थपूर्ण है। जीवन में भी यही होता है- सत्य या सुंदर या शुभ की एक अनुभूति ही सब-कुछ बदल देती है, फिर उसके अनुसार ही स्वयं को रूपांतरित होना पड़ता है।
अपने जीवन का एक अंश भी यदि शांत और सुंदर बनाने में कोई सफल हो जावे, तो वह शीघ्र ही पूरे जीवन को ही दूसरा होता अनुभव करेगा। क्योंकि, तब उसका ही श्रेष्ठतर अंश अश्रेष्ठ को बदलने में लग जाता है। श्रेष्ठ अश्रेष्ठ को बदल देता है- और स्मरण रहे कि सत्य की एक बूंद भी असत्य के पूरे सागर से ज्यादा शक्तिशाली होती है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
गुस्ताव मेयरिन्क ने एक संस्मरण लिखा है। उनके किसी चीनी मित्र ने एक अत्यंत कलात्मक और सुंदर पेटी उपहार में भेजी। किंतु, साथ में यह आग्रह भी किया कि उसे कक्ष के पूर्व-पश्चिम दिशा में ही रखा जावे, क्योंकि उसका निर्माण ऐसे ही किया गया है कि वह पूर्वोन्मुख होकर ही सर्वाधिक सुंदर होती है। मेयरिन्क ने इस आग्रह को आदर दिया और कम्पास से देखकर उस पेटी को मेज पर पूर्व-पश्चिम जमाया। लेकिन वह कमरे की दूसरी चीजों के साथ ठीक नहीं जमी। पूरा कमरा ही बेमेल दिखने लगा तब और चीजों को भी बदलना पड़ा। मेज भी बाद में और चीजों से संगत दीखे इसलिए पूर्व-पश्चिम जमानी पड़ी।। इस भांति पूरा कक्ष ही पुन: आयोजित हुआ और समय के साथ ही उससे संगति बैठाने को पूरा मकान ही बदल गया। यहां तक कि मकान के बाहर की बगिया तक में उसके कारण परिवर्तन हो गये। यह घटना बहुत अर्थपूर्ण है। जीवन में भी यही होता है- सत्य या सुंदर या शुभ की एक अनुभूति ही सब-कुछ बदल देती है, फिर उसके अनुसार ही स्वयं को रूपांतरित होना पड़ता है।
अपने जीवन का एक अंश भी यदि शांत और सुंदर बनाने में कोई सफल हो जावे, तो वह शीघ्र ही पूरे जीवन को ही दूसरा होता अनुभव करेगा। क्योंकि, तब उसका ही श्रेष्ठतर अंश अश्रेष्ठ को बदलने में लग जाता है। श्रेष्ठ अश्रेष्ठ को बदल देता है- और स्मरण रहे कि सत्य की एक बूंद भी असत्य के पूरे सागर से ज्यादा शक्तिशाली होती है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
1 comment:
जय हो महाराज जी की!!!
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