प्रेम और प्रतीक्षा


मैं माली को बीज बोते देखता हूं। फिर, वह खाद देता है। पानी देता है और फूलों के आने की प्रतीक्षा करता है। फूल खींचकर जबरदस्ती पौधों में नहीं निकाले जाते हैं। उनकी तो धीरज से प्रतीक्षा करनी होती है।
प्रेम और प्रतीक्षा।
ऐसे ही प्रभु के बीज भी बोने होते हैं। ऐसे ही दिव्य जीवन के फूलों को खिलने की भी राह देखनी होती है।
प्रार्थना और प्रतीक्षा।
जो इसके विपरीत चलता है और अधैर्य प्रकट करता है, वह कहीं भी नहीं पहुंच पाता है। अधैर्य उस विकास के लिए अच्छी खाद नहीं है।
शांति से, धैर्य से और प्रीति से प्रतीक्षा करने पर किसी सुबह अनायास ही फूल खिल जाते हैं, और उनकी गंध जीवन के आंगन को सुवासित कर देती है।
अनंत के फूलों के लिए अनंत प्रतीक्षा अपेक्षित है। पर यह स्मरण रहे कि जो उतनी प्रतीक्षा के लिए तत्पर होता है, उसकी प्राप्ति का समय तत्क्षण आ जाता है। अनंत धैर्य ही अनंत पाने की एक मात्र शर्त है। उस शर्त के पूरा होते ही वह उपलब्ध हो जाता है। उसे कहीं बाहर से थोड़ा ही आना है। वह तो भीतर का ही विकास है। वह तो मौजूद ही है। पर अधैर्य और अशांति के कारण हम उसे नहीं देख पाते हैं।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)