भागवत-चैतन्य का विज्ञान है, धर्म

रात्रि की शांति में नगर सो गया है। एक अतिथि को साथ लेकर मैं घूम कर लौटा हूं। मार्ग में बहुत बातें हुई हैं। अतिथि अनात्मवादी हैं। विद्वान हैं और खूब पढ़ा-लिखा है। बहुत तर्क उन्होंने इकटं्ठे किये हैं। मैंने वह सब शांत हो सुना है। और फिर सिर्फ एक ही बात पूछी है कि क्या इन सारे विचारों से शांति और आनंद उन्हें उपलब्ध हो रहा है?
इस पर वे थोड़ा सकुचा गये हैं और उत्तर नहीं खोज पाए हैं।
सत्य की कसौटी तर्क नहीं है। सत्य की कसौटी विचार नहीं है। सत्य की कसौटी है आनंदानुभूति। विचार-सारणी सम्यक हो, तो परिणाम में जीवन आनंद-चेतना से भर जाता है। इस स्थिति को ही पाने के लिए सब विचार हैं और जो विचार-दर्शन यहां नहीं ले आता, वह अविचार ही ज्यादा है। इससे, मैंने उनसे कहा, 'मैं आपकी बातों का विरोध नहीं करता हूं। बस, आपसे ही- अपने आपसे यह प्रश्न पूछने की विनय करता हूं।'
धर्म विचार नहीं है। वह तो भागवत-चैतन्य उपलब्ध करने का एक विज्ञान मात्र है। उसकी परीक्षा विवाद में नहीं, प्रयोग में है। वह सत्य-निर्णय नहीं, सत्य-साधना और सिद्धि है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)