ध्यान के लिए उचित स्थान



अगर ध्यान के लिए एक नियत जगह चुन सकें- एक छोटा सा मंदिर, घर में एक छोटा सा कोना, एक ध्यान-कक्ष- तो सर्वोत्तम है। फिर उस जगह का किसी और काम के लिए उपयोग न करें। क्योंकि हर काम की अपनी तरंगें होती हैं। उस जगह का उपयोग सिर्फ ध्यान के लिए करें और किसी काम के लिए उसका उपयोग न करें। तो वह जगह चा‌र्ज्ड हो जाएगी और रोज हमारी प्रतीक्षा करेगी। वह जगह बहुत सहयोगी हो जाएगी। वहां एक वातावरण निर्मित हो जाएगा, एक तरंग निर्मित हो जाएगी, जिसमें हम सरलता से ध्यान में गहरे प्रवेश कर सकते हैं। इसी वजह से मंदिरों, मस्जिदों, चर्चो का निर्माण हुआ था- कोई ऐसी जगह हो, जिसका उपयोग सिर्फ ध्यान और प्रार्थना के लिए हो।
ध्यान के लिए अगर एक नियत समय चुन सकें, तो वह भी बहुत उपयोगी होगा, क्योंकि हमारा शरीर, हमारा मन एक यंत्र है। अगर हम रोज एक नियत समय पर भोजन करते हैं, तो हमारा शरीर उस समय भोजन की मांग करने लगता है।
कभी आप एक मजेदार प्रयोग कर सकते हैं, अगर आप रोज एक बजे भोजन करते हैं और आप घड़ी देखें और घड़ी में एक बजें हों, तो आपको भूख लग जाएगी- भले ही घड़ी गलत हो और अभी ग्यारह या बारह ही बजें हों। हमारा शरीर एक यंत्र है।
हमारा मन भी एक यंत्र है। अगर हम एक नियत जगह पर, एक नियत समय पर रोज ध्यान करें, तो हमारे शरीर और मन में ध्यान के लिए भी एक प्रकार की भूख निर्मित हो जाती है। रोज उस समय पर शरीर और मन ध्यान में जाने की मांग करेंगे। यह ध्यान में जाने में सहयोगी होगा। एक भावदशा निर्मित होगी, जिसमें हम एक भूख बन जाएंगे, एक प्यास बन जाएंगे।
शुरू-शुरू में यह बहुत सहयोगी होगा, तब तक ध्यान हमारे लिए इतना सहज न हो जाए कि हम कहीं भी, किसी भी समय ध्यान में जा सकें। तब तक मन और शरीर की इन यांत्रिक व्यवस्थाओं का उपयोग करना चाहिए।
इनसे एक वातावरण निर्मित होता है : कमरे में अंधेरा हो, अगरबत्ती या धूपबत्ती की खुशबू हो, एक सी लंबाई के व एक प्रकार के वस्त्र पहनें, एक से कालीन या चटाई का उपयोग करें, एक से आसन का उपयोग करें। इससे ध्यान नहीं हो जाता, लेकिन इससे मदद मिलती है। अगर कोई और इसकी नकल करे, तो उसे बाधा भी पड़ सकती है। प्रत्येक को अपनी व्यवस्था खोजनी है। व्यवस्था सिर्फ इतना करती है कि एक सुखद स्थिति निर्मित होती है। और जब हम सुखद स्थिति में प्रतीक्षा करते हैं, तो कुछ घटता है। जैसे नींद उतरती है, ऐसे ही परमात्मा उतरता है। जैसे प्रेम घटता है, ऐसे ही ध्यान घटता है। हम इसे प्रयास से नहीं ला सकते, हम इसे जबरदस्ती नहीं पा सकते।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)