क्षण का मूल्‍य



शाश्वत क्षण में छिपा है और अणु में विराट। अणु को जो अणु मानकर छोड़ दे, वह विराट को ही खो देते हैं। क्षुद्र में ही खोदने से परम की उपलब्धि होती है।
जीवन का प्रत्येक क्षण महत्वपूर्ण है। और किसी भी क्षण का मूल्य किसी दूसरे क्षण न ज्यादा है, न कम है। आनंद को पाने के लिए किसी अवसर की प्रतीक्षा करना व्यर्थ है। जो जानते हैं, वे प्रत्येक क्षण को ही आनंद बना लेते हैं। और, जो अवसर की प्रतीक्षा करते हैं, वे जीवन के अवसर को खो देते हैं। जीवन की कृतार्थता इकट्ठी और राशिभूत नहीं मिलती है।
एक साधु के निर्वाण पर उसके शिष्यों से पूछा गया था कि दिवंगत सद्गुरु अपने जीवन में सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात कौन-सी मानते थे? उन्होंने उत्तर में कहा, 'वही जिसमें किसी क्षण वे संलग्न होते थे।'
बूंद-बूंद से सागर बनता है। और क्षण-क्षण से जीवन। बूंद को जो पहचान ले, वह सागर को जान लेता है। और, क्षण को जो पा ले, वह जीवन पा लेता है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)