विशिष्ट होने की आवश्यकता


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अन्तिम
                           
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मुझे यहां दर्द है, माथे में।

यहां दर्द हो रहा है क्योंकि तुम इसे समझने की कोशिश नहीं कर रही-इसलिये दर्द होता है। तुम इसकी निंदा कर रही हो;तुम [स्वयं से] कह रही हो,’तुम्हें अवसाद में नहीं जाना है। यह तुम नहीं हो, यह तुम्हारी छबि के लिये ठीक नहीं है यह तुम्हारी छबि के खिलाफ है, यह तुमपर धब्बा है, और तुम इतनी खूबसूरत लड़की हो! तुम अवसाद से भरी क्यों हो?’- यह समझने की बजाय कि तुम अवसाद से भरी क्यों हो।

अवसाद का अर्थ है कि किसी कारणवश क्रोध तुम्हारे भीतर नकारात्मक रूप में विद्यमान है: अवसाद क्रोध का नकारात्मक रूप है।अंग्रेज़ी का शब्द डिप्रैशन अर्थपूर्ण है- इसका अर्थ है कि कुछ प्रैस किया गया है, दबाया गया है; डिप्रैस्ड का यही अर्थ है। तुम भीतर कुछ दबा रहे हो, और जब क्रोध को बहुत अधिक दबाया जाता है तो वह उदासी बन जाता है। उदासी क्रोधित होने का नकारात्मक रूप है, क्रोधित होने का स्त्रैण रूप।

यदि तुम इसपर से दबाव हटा लो तो यह क्रोध बन जायेगा। तुम अपने बचपन से कुछ चीजों के बारे में क्रोधित रहे होगे, लेकिन उन्हें व्यक्त न कर पाये होगे, इसलिये है यह डिप्रैशन। इसे समझने का प्रयास करो! और समस्या यह है कि डिप्रैशन को सुलझाया नहीं जा सकता, क्योंकि यह वास्तविक समस्या नहीं है। वास्तविक समस्या है क्रोध- और तुम डिप्रैशन की निंदा करे चले जाते हो, तो तुम परछाइंयों से लड़ रहे हो।


पहले यह देखो कि तुम डिप्रैस्ड क्यों होइसे गहरे में देखो और तुम क्रोध को पाओगे। तुम्हारे भीतर बहुत क्रोध भरा हैसंभव है मां के प्रति हो, पिता के प्रति हो, संसार के प्रति हो, तुम्हारे अपने प्रति हो, लेकिन सवाल यह नहीं है। तुम भीतर क्रोध से भरे हो, और बचपन से ही तुम मुस्कराने का प्रयत्न करते रहे हो, ताकि क्रोधित न हो सको। यह सही नहीं है। तुम्हे यह सिखाया गया है और तुमने इसे ठीक से सीख लिया है। तो बाहर तुम प्रसन्न दिखाई देते हो, बाहर से तुम मुस्कराते चले जाते हो, और यह सब मुस्कराहटें झूठी हैं। भीतर गहरे में कहीं भारी क्रोध छुपा रखा है तुमने। अब तुम इसे व्यक्त तो कर नहीं पाते इसलिये इसपर बैठे हो- इसी का नाम डिप्रैशन है; तब तुम डिप्रैस्ड महसूस करते हो।

इसे बहने दो, क्रोध को आने दो। एक बार क्रोध आ गया तो डिप्रैशन तिरोहित हो जायेगा। क्या तुमने इसे कभी देखा नहीं, जाना नहीं? – कि कई बार वास्तविक क्रोध के पश्चात व्यक्ति बहुत अच्छा महसूस करता है, बहुत जीवंत? घर में कुछ करना शुरू करो। हूं? रोजाना क्रोध-ध्यान करोबीस मिनट बहुत होंगे। तीसरे दिन के बाद तुम इस व्यायाम को इतना पसंद करोगे, कि तुम इसकी प्रतीक्षा न कर सकोगे। यह तुम्हें इतना हल्का कर देगा, और तुम देखोगे कि तुम्हारा डिप्रैशन तिरोहित हो रहा है। पहली बार तुम सचमुच मुस्कुराओगेक्योंकि इस डिप्रैशन के साथ तुम मुस्कुरा नहीं सकते, बस ढोंग कर सकते हो।

व्यक्ति मुस्कराहटों के बिना नहीं जी सकता, इसलिये उसे ढोंग करना पड़ता है, लेकिन एक झूठी मुस्कराहट बहुत पीड़ा दे जाती हैयह हमें प्रसन्न नहीं करती, यह सिर्फ हमें यह स्मरण दिलाती है कि हम कितने दुखी हैं। 

लेकिन तुम इसके प्रति सजग हो गये हो-यह शुभ है। जब भी कुछ पीड़ा पहुंचाये, यह सहायता करेगा। मनुष्य इतना बीमार है कि जब भी कुछ सहायक सिद्ध होता है, यह पीड़ा पहुंचाता है, यह कहीं किसी घाव को छेड़ देता है। लेकिन यह शुभ हुआ है
 समाप्‍त
(सौजन्‍य से :  ओशो न्‍यूज लेटर )

विशिष्ट होने की आवश्यकता


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एक

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मैं अवसाद व आत्म-निंदा से भरा रहता हूं, हालांकि मुझे मालूम नहीं क्यों…?
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वैसे ही बने रहने का तरीका है यहयह मन की चालाकी है। बजाय इसके कि समझा जाये, ऊर्जा निंदा की ओर चलना प्रारंभ कर देती हैजबकि बदलाव समझ से आता है, निंदा से नहीं। तो मन अत्यंत चालाक है: जैसे ही तुम कोई सच्चाई देखना शुरू करते हो, मन इसपर हावी हो जाता है और निंदा करनी शुरू कर देता है। अब सपूर्ण ऊर्जा निंदा बन जाती है, समझ भूल जाती है, हट जाती है, और तुम्हारी ऊर्जा निंदा की ओर बहने लगती हैलेकिन निंदा सहायक नहीं होती। यह तुम्हें अवसाद से भर सकती है, यह तुम्हें क्रोध से भर सकती है, लेकिन अवसाद और क्रोध तुम्हें कभी बदल नहीं सकती। तुम वैसे ही रहते हो, उसी दुष्चक्र में घूमते।

समझ तुम्हें मुक्त करती है, तो जब भी तुम कोई सत्य देखो, उसकी निंदा करने की कोई आवश्यकता नहीं, उसके बारे में चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं। आवश्यकता है तो इस बात की कि तुम उसमें गहरे जाओ और उसे समझने की कोशिश करो। 

यदि मैं तुम्हें कुछ कहता हूं और वह तुम्हें चुभ जाता है- और वही मेरा उद्देश्य भी है कि यह तुमपर कहीं चोट करे- तो तुम्हें देखना है कि चोट क्यों लगती है, कहां लगती है और समस्या क्या है। तुम्हें इसके भीतर जाना है। इसे भीतर से देखना, इसे चारों ओर से समझना, सब पक्षों से जाननायदि तुम निंदा करते हो तो देख नहीं पाते, इसे सब पक्षों से पढ़ नहीं पाते। तुमने पहले ही निर्णय कर लिया है कि यह बुरा है, इसे बिना कोई मौका दिये तुमने पहले ही निर्णय दे दिया है।

सत्य को सुनो, इसके भीतर जाओ, इसे गुनो, इसे भूल जाओ, और जितना तुम इसे पढ़ पाओगे, उतनी ही इससे मुक्त होने की तुममें क्षमता आयेगी। इसे समझने की क्षमता और इससे मुक्त होने की क्षमता एक ही घटना के दो नाम है।

यदि मुझे कोई बात समझ में आती है तो मुझमें इससे बाहर आने की क्षमता आती है, इसका अतिक्रमण करने की क्षमता आती है। यदि मुझे कोई बात समझ में नहीं आती तो मैं इससे बाहर नहीं आ सकता। तो मन सब के साथ यही करे चले जाता है, केवल तुम्हारे साथ ही नहीं। तत्क्षण तुम बीच में कूद जाते हो और वक्तव्य देते हो,’यह गलत है, यह मुझमें नहीं होना चाहिये, मैं योग्य नहीं हूं, मेरे संबंध गलत हैं, यह गलत है, वह गलत है।और तुम अपराध-भाव से भर जाते हो। अब संपूर्ण ऊर्जा अपराध-भाव की ओर बह रही है, जबकि यहां मेरा कार्य है तुम्हें अपराध-भाव से जितना संभव है उतना मुक्त कर सकूं।

तो जो भी तुम देखो उसे निजी रूप में मत लो; इसका तुमसे विशेष कुछ लेना-देना नहीं; मन का यही ढंग है कार्य करने का। यदि ईर्ष्या है, मालकियत है, क्रोध है, मन इसी प्रकार कार्य करता हैलगभग सबका मन; अंतर केवल डिग्री का है।

मन की एक और प्रक्रिया है: या तो यह प्रशंसा करनी चाहता है या निंदा। यह मध्य में कभी नहीं रहता। प्रशंसा से तुम विशिष्ट हो जाते हो और तुम्हारा अहंकार की तृप्ति होती है; निंदा से भी तुम विशिष्ट होते हो। जरा चालाकी देखो: दोनो ओर से तुम विशिष्ट होते हो! वह विशिष्ट है: या तो वह संत है, एक महान संत, या फिर वह बहुत बड़ी पापिन है, लेकिन दोनों ओर से तुम्हारा अहंकार तृप्त होता है। हर प्रकार से तुम एक ही बात कह रहे हो- कि तुम विशिष्ट हो। मन यह नहीं सुनना चाहता कि वह साधारण मात्र है। यह ईर्ष्या, यह क्रोध, यह सबधों की और हमारे होने की समस्याएं। यह सब साधारण हैं, सब इन्हीं में फंसे हैं। वह उतने ही साधारण हैं जितने हमारे बाल। किसी के ज़्यादा हैं तो किसी के थोड़े, किसी के काले हैं तो किसी के लाल, लेकिन यह अधिक महत्वपूर्ण नहीं है- यह सब साधारण हैं, सब समस्याएं साधारण हैं। सब पाप साधारण हैं और सब पुण्य साधारण है, लेकिन अहंकार विशिष्ट महसूस करना चाहता है। या तो यह कहता है कि तुम श्रेष्टतम हो या निकृष्टतम।

तो बस देखोयह सब साधारण समस्याएं हैं? क्या समस्याएं हैं, मुझे बताओ? तुम क्या समस्याएं अनुभव करती हो? बस उनके नाम लो।
(सौजन्‍य से- ओशो  न्‍यूज लेटर)
जारी---