जिंदगी का सत्य!


जीवन झाग का बुलबुला है। जो उसे ऐसा नहीं देखते, वे उसी में डूबते और नष्ट हो जाते हैं। किंतु, जो इस सत्य के प्रति सजग होते हैं, वे एक ऐसे जीवन को पा लेने का प्रारंभ करते हैं, जिसका कि कोई अंत नहीं होता है।
एक फकीर कैद कर लिया गया था। उसने कुछ ऐसी सत्य बातें कहीं थीं, जो कि बादशाह को अप्रिय थीं। उस फकीर के किसी मित्र ने कैदखाने में जाकर उससे कहा, ''यह मुसीबत व्यर्थ क्यों मोल ले ली? न कही होती वे बातें, तो क्या बिगड़ता था?'' फकीर ने कहा, ''सत्य ही अब मुझ से बोला जाता है। असत्य का ख्याल ही नहीं उठता। जब से जीवन में परमात्मा का आभास मिला, तब से सत्य के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं रहा है। फिर, यह कैद तो घड़ी भर की है!'' किसी ने जाकर यह बात बादशाह से कह दी। बादशाह ने कहा, ''उस पागल फकीर को कह देना कि कैद घड़ी भर की नहीं, जीवन भर की है।'' जब यह फकीर ने सुना तो खूब हंसने लगा और बोला, ''प्यारे बादशाह को कहना कि उस पागल फकीर ने पूछा है कि क्या जिंदगी घड़ी भर से ज्यादा की है?''
सत्य-जीवन जिन्हें पाना हो, उन्हें इस तथाकथित जीवन की सत्यता को जानना होगा। और, जो इसकी सत्यता को जानने का प्रयास करते हैं, वे पाते हैं कि एक स्वप्न से ज्यादा न इसकी सत्ता है और न अर्थ है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)