प्रार्थना-प्रेम और समर्पण


प्रार्थना क्या है? - प्रेम और समर्पण। और, जहां प्रेम नहीं है, वहां प्रार्थना नहीं है।
प्रेम के स्मरण में एक अद्भुत घटना का उल्लेख है। नूरी
, रक्काम एवं अन्य कुछ सूफी फकीरों पर काफिर होने का आरोप लगाया गया था और उन्हें मृत्यु दण्ड दिया जा रहा था। जल्लाद जब नंगी तलवार लेकर रक्काम के निकट आये, तो नूरी ने उठकर स्वयं को अपने मित्र के स्थान पर अत्यंत प्रसन्नता और नम्रता के साथ पेश कर दिया। दर्शक स्तब्ध रह गये। हजारों लोगों की भीड़ थी। उनमें एक सन्नाटा दौड़ गया। जल्लाद ने कहा, 'हे युवक, तलवार ऐसी वस्तु नहीं है, जिससे मिलने के लिए लोग इतने उत्सुक और व्याकुल हों। और फिर तुम्हारी अभी बारी भी नहीं आयी है।'

और, पता है कि फकीर नूरी ने उत्तर में क्या कहा? उसने कहा, 'प्रेम ही मेरा धर्म है। मैं जानता हूं कि जीवन, संसार में सबसे मूल्यवान वस्तु है, लेकिन प्रेम के मुकाबले वह कुछ भी नहीं है। जिसे प्रेम उपलब्ध हो जाता है, उसे जीवन खेल से ज्यादा नहीं है। संसार में जीवन श्रेष्ठ है। प्रेम जीवन से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि वह संसार का नहीं, सत्य का अंग है। और प्रेम कहता है कि जब मृत्यु आये, तो अपने मित्रों के आगे हो जाओ और जब जीवन मिलता हो तो पीछे। इसे हम प्रार्थना कहते हैं।'

प्रार्थना का कोई ढांचा नहीं होता है। वह तो हृदय का सहज अंकुरण है। जैसे पर्वत से झरने बहते हैं, ऐसे ही प्रेम-पूर्ण हृदय से प्रार्थना का आविर्भाव होता है।

(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)