शास्त्र क्या कहते हैं, वह नहीं- प्रेम जो कहे, वही सत्य है। क्या प्रेम से भी बड़ा कोई शास्त्र है। एक बार मोजेज किसी नदी के तट से निकलते थे। उन्होंने एक गड़रिये को स्वयं से बातें करते सुना। वह गड़रिया कह रहा था, ''ओ परमात्मा! मैंने तेरे संबंध में बहुत-सी बातें सुनी हैं। तू बहुत सुंदर है, बहुत प्रिय है, बहुत दयालु है- यदि कभी तू मेरे पास आया, तो मैं अपने स्वयं के कपड़े तुझे पहनाऊंगा और जंगली जानवरों से रात दिन तेरी रक्षा करूंगा। रोज नदी में नहलाऊंगा और अच्छी से अच्छी चीजें खाने को दूंगा- दूध, रोटी और मक्खन। मैं तुझे इतना प्रेम करता हूं। परमात्मा! मुझे दर्शन दे। यदि एक भी बार तुझे देख पाऊं, तो मैं अपना सब कुछ दे दूंगा।''
यह सब सुन मोजेज ने उस गड़रिये से कहा, ''मूर्ख! यह सब क्या कह रहा है? ईश्वर जो सबका रक्षक है, उसकी तू रक्षा करेगा? उसे तू रोटी देगा और अपने गंदे कपड़े पहनाएगा? उस पवित्र परमात्मा को तू नदी में नहलाएगा और सब-कुछ ही जिसका है, उसे तू अपना सब-कुछ देने का प्रलोभन दे रहा है?''
उस गडि़रिये ने सब सुना, तो बहुत दुख और पश्चाताप से कांपने लगा। उसकी आंखें आंसुओं से भर गई और वह परमात्मा से क्षमा मांगने को घुटने टेक कर जमीन पर बैठ गया। लेकिन, मोजेज कुछ ही कदम गये होंगे कि उन्होंने अपने हृदय की अंतरतम गहराई से यह आवाज आती हुई सुनी, ''पागल! यह तूने क्या किया? मैंने तुझे भेजा है कि तू मेरे प्यारों को मेरे निकट ला, लेकिन तूने उल्टे ही एक प्यारे को दूर कर दिया है!''
परमात्मा को कहां खोजे? मैंने कहा : ''प्रेम में। और प्रेम हो तो याद रखना कि वह पाषाण में भी है।''
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
3 comments:
अच्छा प्रसंग। आपकी निरंतरता देख कर दंग हो जाता हूं।
is sansar main kitny maha purush huay jo swayam ko pahchan bhagwan
kah sake.
unke bare main koun kya kah sakta hai.
satya hai ye jab avsar mile ishwar se vaartalap karlo.....use kaha khojte ho kasturi mrig ki bhanti...wah to hamesha se hamare hriday me vidhyamaan hai.....jai ho
Post a Comment