निष्क्रिय ध्यान!
यह ध्यान प्रात:काल के लिए है। इस ध्यान में रीढ़ को सीधा रख कर, आंखें बंद करके, गर्दन को सीधा रखना है। ओंठ बंद हों और जीभ तालु से लगी हो। श्वास धीमी गहरी लेना है। और ध्यान नाभि के पास रखना है। नाभि-केंद्र पर श्वास के कारण जो कंपन मालूम होता है, उसके प्रति जागे रहना है। बस इतना ही करना है। यह प्रयोग चित्त को शांत करता है और विचारों को शून्य कर देता है। इस शून्य से अंतत: स्वयं में प्रवेश हो जाता है।
इस प्रयोग में हम क्या करेंगे? शांत बैठेंगे। शरीर को शिथिल, रिलैक्स्ड और रीढ़ को सीधा रखेंगे। शरीर के सारे हलन-चलन, मूवमेंट को छोड़ देंगे। शांत, धीमे और गहरी श्वास लेंगे। और मौन, अपनी श्वास को देखते रहें और बाहर की जो ध्वनियां सुनाई पड़ें, उन्हें सुनते रहेंगे। कोई प्रतिक्रिया नहीं करेंगे। उन पर कोई विचार नहीं करेंगे। शब्द न हों और हम केवल साक्षी हैं, जो भी हो रहा है, हम केवल उसे दूर खड़े जान रहे हैं, ऐसे भाव में अपने को छोड़ देंगे। कहीं कोई एकाग्रता, कनसनट्रेशन नहीं करनी है। बस चुप जो भी हो रहा है, उसके प्रति जागरूक बने रहना है।
सुनो! आंखें बंद कर लो और सुनो। चिडि़यों की टीवी-टुट, हवाओं के वृक्षों को हिलाते थपेड़े, किसी बच्चे का रोना और पास के कुएं पर चलती हुई रहट की आवाज- और बस सुनते रहो, अपने भीतर श्वास स्पंदन और हृदय की धड़कन। और, फिर एक अभिनव शांति और सन्नाटा उतरेगा और आप पाओगे कि बाहर ध्वनि है, पर भीतर निस्तब्धता है। और आप पाओगे कि एक नये शांति के आयाम में प्रवेश हुआ है। तब विचार नहीं रह जाते हैं, केवल चेतना रह जाती है। और इस शून्य के माध्यम में ध्यान, अटेंशन उस और मुड़ता है जहां हमारा आवास है। हम बाहर से घर की ओर मुड़ते हैं।
दर्शन बाहर लाया है, दर्शन ही भीतर ले जाता है। केवल देखते रहो- देखते रहो-विचार को, श्वास को, नाभि स्पंदन को। और कोई प्रतिक्रिया मत करो। और फिर कुछ होता है, जो हमारे चित्त की सृष्टिं नहीं है, जो हमारी सृष्टिं नहीं है, वरन हमारा होना है, हमारी सत्ता है, जो धर्म है, जिसने हमें धारण किया है, वह उद्घाटित हो जाता है और हम आश्चर्यो के आश्चर्य स्वयं के समक्ष खड़े हो जाते हैं।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
3 comments:
इस ध्यान प्रयोग से मुझे हमेशा ही बहुत लाभ हुआ है, आपका आभार. जय हो!!
aapke dono blog follow karne layak hai lakin mujhe follow ka link nahi mila khair aache blog hai mubarak.
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा ओशो शब्द खोजते हुए आपके ब्लॉग तक पहुंचा. मेरे एक सलाह है की आप चिठाजगत का एग्रेगेटर अपने ब्लॉग में लगायें जिससे की आपका लेख छपते ही चिठाजगत पर आ जाने से और बहुत से लोग इसे पढ़ सकें.
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